SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 613
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राय धनपतसिंघ बाहाऽरका जैनागम संग्रह नाग उसरा. ए७३ में (अप्पाहट्ठके० ) पोताथकी जाणीने (समणाउसोके० ) हेसाधुन (सेनदएके० ) ते पाणी (बुइएके०) कह्यो ( कामनोगेयंके) कामनोगने खलुइति वाक्यालंकारे (म एके०) में (अप्पाह(के०) पोता थकी जाणीने (समणानसोके०) हेसाधु ( सेके०) तेने (सेएके) कर्दम (बुइएके०) कह्यो जेकर्दममाहे खुता थका जीव पोते पोताने उदरी नरके अने (जयके ) सामान्यलोक ते (जाणवयंचके०) जनपद एटले आर्य देशना उपना एवा अनेक लोक तेने (खलु मएके० ) में निश्चेकरी (अप्पाहट्टके० ) पोताथकी जाणीने (समणासोके०) हे आयुष्यमंत श्रमणो (तेबहवेके०) तेवा घणा एक (पनमवरपोमरीएबुइए के ० ) पद्मकमलो कह्या तथा (रायाचसेखलुमएयाप्पा हद्रुसमणाउसोके०) राजा जे सामान्य लोकना अधिपति केवाय तेने में पोता थकी जाणीने हे श्रमणो (एगेमहंपनमवरपोमरीएबुइएके०) एक महोटुं पुंमरीक कमल क ह्यो भने जे (अन्ननलियायके०) अन्यतीर्थिक क्रियावादि अक्रियावादि प्रमुख (तेके०) तेने (खलुमएयप्पा हद्दुसमणानसो के० ) में पोता थकी जाणीने हे श्रमणो (चत्ता रिपुरिसजायाबुश्या के०) चार पुरुष जात कह्या ते राजारूपमहोटो कमल तेने उ घरवाने असमर्थ कह्या अने (धम्मंचखलुमएअप्पाहट्ठसमणानसोसेनिरकबुइए के० ) जे श्रतचारित्ररूप धर्म तेने में पोता थकी जाणीने श्रमणो निकु एटले अणगार कह्यो जेमा घुमरीक कमलरूप राजाने उदवानी समर्था कही (धम्मतिबंचखलुम एअप्पाहसमणाउसो सेतीरेबुशए के०) तथाजे धर्मतीर्थते निचे में पोता थकी जा णीने तीर एटले कांठो कह्यो (धम्मकहंचरखनुमएअप्पाहदुसमणानसोसेसदेबुइएके०) तथा जेधर्म कथा ते निश्चें में पोता थकी जाणीने हे श्रमणो तेने में शब्द कह्यो (नि वाणंचखलुमएयप्पाहट्ठसमणानसोसेनप्पाएबुइए के० ) तथा जे मोक्षपद ते निचे में पोता थकी जाणीने हे श्रमणो तेने में कमलनो नझरवो कह्यो (एवमेयंच के०) ए पूर्वोक्त सर्व लोकादिकपदार्थ ते खलु शब्दवाक्यालंकारें (मएके० ) में (बाप्पाहद के ) आप थकी जाणीने (समणानसो के० ) हेश्रमणो आयुष्यमंतो ( सेएवमेयंबु इयंके० ) तेने पुष्करणी कमल प्रमुख एरीते में कह्या एटले सामान्य प्रकारे दृष्टांत क ह्यो हवे विशेष थकी राजा उरणादिकनाव कहे ॥१॥ ॥ दीपिका-लोकं मनुष्यक्षेत्रं । चशब्दः समुच्चये । खलुक्यालंकारे । मया (अप्पा हवत्ति) आत्मनि थाहृत्य व्यवस्थाप्य अथवा आत्मना स्वयमाहत्या ज्ञात्वा न परोपदे शतः सा पुष्करिणी उक्ता । कर्म चाष्टप्रकारं खलु मयात्मनि बाहृत्य आत्मना वा था हृत्य हेश्रमण आयुष्मन् तउदकमुक्तं पुंडरीकोत्पत्तिकारणं । कामश्वारूपा जोगामदन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003652
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1880
Total Pages1050
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size42 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy