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राय धनपतसिंघ बादाउरका जैनागमसंग्रह नाग उसरा. ए मंतेता एवं वयासी हं नोसमणानसो ते आइरकामि विनावेमि किमि पवेदेमि सअहं सहे सनिमित्तं नुज्जोनुजो नवदंसेमि सेबेमि ॥११॥ अर्थ-(अहके०) हवे चोथा पुरुष नंतर पांचमो पुरुष कहे ते केवो तोके (नि स्कू के० ) निक्षण शील पचन पाचनादिक सावद्यानुष्ठान रहित निर्दोष थाहार नो जी (सूहे के०) राग ष रहित (तीरही के०) संसार समुना तीरनो यर्थी (खेयन्ने के०) खेदज्ञ एटले समस्त जीवोना खेदनो जाण (जावपरक्कम के०) यावत् मा गनी गतिना पराक्रमनुं जाण अंही बीजो आगलनो वर्णन सर्व करवो एवो जाण पुरु षते (अनतरादिसावाअणुदिसावा के० ) अन्य कोइएक दिशा थकी अथवा वि दिशा थकी (भागम्म के० ) यावीने ( तंपुरकरिणिं के०) ते पुष्करणी (तीसेपुरकर एगीएतीरेहिचा के० ) ते पुष्करणीने कांठे रहीने (तंएगंमहंतंपनमवरपोमरीयंके० ) ते एक महोटुं प्रधान पुंमरीक कमलने (पासंति के ) दीठो ( जावपडिरूवं के०) ते क मल ज्यांलगे प्रतिरूप सुधी पूर्वे वर्णन करेलुं तेवो कमल दीठो (तेतचत्तारिपुरिसजा एपासंति के०) तेणे त्यां चार पुरुषजात पूर्वोक्त चारदिशाना यावेला दीठा ते चारे पु रुष (पहीणेतीरं के० ) वाव्यना तीर थकी भ्रष्ट अने (अपत्तेजावपरमवरपोमरीयंणो हच्चाएगोपाराए के०) पुंमरीक कमलने पण यावत् नथी पाम्या (अंतरापुरकरिणीएके०) वाव्यने विचाले (सेयंसि के०) कादव मांहे (सिन्ने के०) खुताले तेने देखीने (तएणंसे निरकू के०) तेवार पड़ी ते निकु साधु (तं के०) ते चार पुरुषोने (एवंवयासि के०) एम बोल्यो (अहोणंश्मेपुरिसा के०) अहो ए पुरुष बापडा (अखेयन्ना के०) अखेदज्ञ (जाव गोमग्गस्तगतिपरक्कमस्म के०) यावत् मार्गनी गतिना पराक्रमना अजाण (जन्नएतेषु रिसाके०) जेम ए पुरुष (एवंमन्नेके) एम जाणे जे (अम्हेतपनमवरपोमरीयनमिरिक स्साम्मो के०) यमे ए कमल उदरी सुं तेवा विधिये नववाने अर्थे गया परंतु (गोख लु के) निश्चे थकीनहीज (एयंपनमवरपोमरीयंके) ए पोमरीक कमलने (एयं नन्निरकत वं के० ) एम उमरी शके नही (जहाणंएतेपुरिसामन्ने के०) जेम ए चार पुरुष जाणे ने ते विधियें कमल नदरी शकाय नही (अहमंसिनिरकुतूहे के०) जेमाटे दुं साधु राग देष रहित (तीरही के०) संसारना तीरनो अर्थी (खेयन्नेके०) खेदज्ञ (जावमग्ग स्सगतिपरक्कममके०) यावत् मार्गनी गतिना पराक्रमनुं जाण (थहमेयंपनमवरपों मरीयंमिरिकस्सामित्ति के० ) हुँ ए पुमरीक कमल निश्चे थकी नहरीश (कटु के०) एम करीने (इतिवच्चा के०) एवं वचन कहीने ( से निरकु के० ) तेसाधु (णोनिक्कमे तं पुरक
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