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________________ तो अपने देशकी भाषा का हमेशां लाभ लेता ही है त - संभव है आपकी की हुई योजना गुजरात काठियावाड के |" संघको भी अधिक आनंद देगी / यात्रार्थ गये हुये हगुजरात काठियावाडमें भी आपकी बनाई पूजायें बड़े शौक / आनंद से पढ़ाते हुए देखे हैं / मतलब आप जो कुछ योजना करदेवेंगे हमे आशा है हिंदुस्तानमें सर्वजिनसंघमें उसका प्रचार हो जावेगा। ___इस हमारी प्रार्थनाको ध्यानमें लेकर आपने नयी योजना तैयार न करके पूर्वपुरुषों के मानकी खातर 108 श्रीशुभ वीरविजयजी महाराजके बनाये हुये 21 क्षमाश्रमणके दोहेको ही, कुछ समझमें आजावे उस ढबमें लिखकर, उन्ही महापुरुषके शुभ नामसे प्रकट करनेकी सूचना पूर्वक हमको बक्षीस किया गया, जिसकी बाबत आपका उपकार मानते हुये इस शुभ योज. नाको, इसी समय काम आनेवाले कितनेक चैत्यवंदन-स्तवन स्तुतियोंके संग्रह सहित इस छोटेसे ट्रेक्टके रूपमें आपश्री जैनसंघके करकमलमें समर्पित करते हैं / ... हम हैं आपश्रीजैनसंघके सेवक. श्रीवात्मानंद जैनसभा लाहौरके मेम्बर. श्रीवीर संवत् 2451 श्रीश्रात्म संवत् 26 विक्रम संवत् 1981 ई. सन 1624 कार्तिक सुदि ५-ज्ञानपंचमी . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003651
Book TitleSiddhachal Tirth ke 21 Kshamashraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1924
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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