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किसी-किसी शब्द पर नियुक्ति है या जिस सूत्र की व्याख्या करते समय आरभ्म में टीकाकार श्रीहरिभद्र सूरि ने "सूत्रकार आह, तच्च इदं सूत्रं, इमं सूत्तं, इत्यादि प्रकार का उल्लेख किया है, वह सूत्र भी मूल 'आवश्यक'-गत समझना चाहिये । ____ पहले उपाय के अनुसार "नमुक्कार, करेमि भंते, लोगस्स, इच्छामि खमासमणो, तस्स उत्तरी, अन्नत्थ, नमुक्कारसहिय आदि पच्चक्खाण," इतने सूत्र मौलिक जान पड़ते हैं ।
दूसरे उपाय के अनुसार "चत्तारि मंगलं, इच्छामि पडिक्कमिउं जो मे देवसिओ, इरियावाहियाए, पगामसिज्जाए, पडिक्कमामि गोयरचारियाए, पडिक्कमामि चाउक्कालं, पडिक्कमामि एगविहे, नमो चउविसाए, इच्छामि ठाइड काउस्सग्गं, सव्वलोए अरिहंतचेइयाणं, इच्छामि खमासमा उवडिओमि अभितर पक्खियं, इच्छामि खमासमणो पियं च मे, इच्छामि खभासमणो पुवि चे पूयाई, इच्छामि खमासमणो उव्वढिओमि तुब्मण्हं, इच्छामि खमासमणो कयाइं च मे, पुवामेव मिच्छत्ताओ पडिक्कम्मइ कित्तिकम्माइं", इतने सूत्र मौलिक जान पड़ते हैं।
तथा इन के अलावा “तत्थ समणोवासओ, थूलगपाणाइवायं समणावासओ पञ्चक्खाइ, थूलगमुसावायं, "इत्यादि जो मूत्र श्रावकधर्म-सम्बन्धी अर्थात् सम्यक्त्व, बारह व्रत और संलेखना-विषयक हैं लथा जिन के आधार पर "वंदित्तु की पद्य-बन्ध रचना हुई है. वे सूत्र भी मौलिक जान पड़ते हैं । यद्यपि इन सूत्रों के पहले टीकाकार ने 'सूत्रकार आह, सूत्रं" इत्यादि शब्दों का उल्लेख नह
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