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________________ ( ४२ ) होनी चाहिये । तत्त्वार्थ - भाष्य- गत 'गणधरानन्तर्यादिभि:' इस अंश में वर्तमान 'आदि' पद से तीर्थकर - गणधर के बाद के अव्यवहित स्थविर की तरह तीर्थकर - गणधर के समकालीन स्थविर का भी ग्रहण किया जाय तो 'आवश्यक सूत्र' का रचना-काल ईस्वी सन् से पूर्व अधिक से अधिक छठी शताब्दि का अन्तिम चरण ही माना जा सकता है और उस के कर्तारूप से तीर्थंकर - गणधर के समकालीन कोई स्थविर माने जा सकते हैं । जो कुछ हो, पर इतना निश्चित जान पड़ता है कि तीर्थंकर के समकालीन स्थविरों से ले कर भद्रबाहु के पूर्ववर्ती या समकालीन स्थविरों तक में से ही किसी की कृति 'आवश्यक सूत्र' है । मूल 'आवश्यक सूत्र' की परीक्षण - विधिः - मूल 'आवश्यक' कितना है अर्थात् उस में कौन-कौन सूत्र सन्निविष्ट हैं, इस की परीक्षा करना जरूरी है; क्योंकि आज-कल साधारण लोग यही समझ रहे हैं कि 'आवश्यक - क्रिया' में जितने सूत्र पढ़े जाते हैं, वे सब मूल 'आवश्यक' के ही हैं । I मूल 'आवश्यक' को पहचानने के उपाय दो हैं :- पहला यह कि जिस सूत्र के ऊपर शब्दशः किंवा अधिकांश शब्दों की सूत्रस्पर्शिक निर्युक्ति हो, वह सूत्र मूल 'आवश्यक' गत है । और दूसरा उपाय यह है कि जिस सूत्र के ऊपर शब्दशः किंवा अधिकांश • शब्दों की सूत्र स्पर्शिक निर्युक्ति नहीं है; पर जिस सामान्यरूप से भी नियुक्ति में वर्णित है या Jain Education International For Private & Personal Use Only सूत्र का अर्थ जिस सूत्र के www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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