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________________ ( ३८ ) 'आवश्यक-सूत्र':-- जो व्यक्ति सच्चा आध्यात्मिक है, उस का जीवन स्वभाव से ही 'आवश्यक-क्रिया'-प्रधान बन जाता है। इस लिये उस के हृदय के अन्दर से 'आवश्यक-क्रिया-द्योतक ध्वनि उठा ही करती है । परन्तु जब तक साधक-अवस्था हो, तब तक व्यावहारिक, धार्षिक--सभी प्रवृत्ति करते समय प्रमादवश 'आवश्यक-क्रिया' में से उपयोग बदल जाने का और इसी कारण तद्विषयक अन्तर्ध्वनि भी बदल जाने का बहुत संभव रहता है। इस लिये ऐसे अधिकारियों को लक्ष्य में रख कर 'आवश्यकक्रिया' को याद कराने के लिये महर्षियों ने ख़ास ख़ास समय नियत किया है और 'आवश्यक-क्रिया' को याद कराने वाले सूत्र भी रचे हैं। जिस से कि अधिकारी लोग खास नियत समय पर उन सूत्रों के द्वारा 'आवश्यक-क्रिया' को याद कर अपने आध्यात्मिक जीवन पर दृष्टि-पात करें। अत एव 'आवश्यक-क्रिया' के दैवसिक, रात्रिक, पाक्षिक आदि पाँच भेद प्रसिद्ध हैं। 'आवश्यकक्रिया' के इस काल-कृत विभाग के अनुसार उस के सूत्रों में भी यत्र-तत्र भेद आ जाता है। अब देखना यह है कि इस समय जो 'आवश्यक-सूत्र' है, वह कब बना है और उस के रचयिता कौन हैं ? पहले प्रश्न का उत्तर यह है कि 'आवश्यक-सूत्र' ईस्वी सन् से पूर्व पाँचवीं शताब्दि से ले कर चौथी शताब्दि के प्रथम पाद तक में किसी समय रचा हुआ होना चाहिये । इस का कारण यह है कि ईस्वी सन् से पूर्व पाँच सौ छब्बीसवें वर्ष में भगवान् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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