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________________ ( ३३ ) बौद्ध लोग अपने मान्य 'त्रिपिटक' - ग्रन्थों में से कुछ सूत्रों को लेकर उन का नित्य पाठ करते हैं । एक तरह से वह उन का अवश्य कर्त्तव्य है । उस में से कुछ वाक्य और उन से मिलतेजुलते 'प्रतिक्रमण' के वाक्य नीचे दिये जाते हैं । बौद्धः (१) " नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा संबुद्धस्स ।" "बुद्धं सरणं गच्छामि । धम्मं सरणं गच्छामि । संघं सरणं गच्छामि । " [ लघुपाठ, सरणत्तय । ] (२) "पाणातिपाता वेरमणि सिक्खापदं समादियामि । अदिन्नादाना वेरमणि सिक्खापदं समादियामि | कामेसु मिच्छाचारा वेरमणि सिक्खापदं समादियामि । मुसावादा वेरमणि सिक्खापदं समादियामि । सुरामेरयमज्जपमादट्ठाना वेरमणि सिक्खापदं समादियामि ।" [लघुपाठ, पंचसील । ] (३) " असेवना च बालानं, पण्डितानं च सेवना । पूजा च पूजनीयानं, एतं मंगलमुत्तमं ॥" " मातापितु उपट्टानं पुचदारस्स संगहो । अनाकुला च कम्मन्ता, एवं मंगलमुत्तमं ॥ दानं च धम्मचरिया च, आतकानं च संगहो । अनवज्जानि कम्मानि, एतं मंगलमुत्तमं ॥ आरति विरति पापा, मज्जपाना च संयमो । अप्पमादो च धम्मे, एतं मंगलमुत्तमं ।। " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org P
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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