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( ३२ ) देश-निरोग, किसी बाल विकोए और लिपी व्यक्ति विशेषमें अन्तर्दृष्टि का विकास कम होता है और किसी में अधिक होता है । इस लिये आध्यात्मिक जीवन को ही वास्तविक जीवन समझने वाले तथा उस जीवन की वृद्धि चाहने वाले सभी सम्प्रदाय के प्रवर्तकों ने अपने-अपने अनुयायियों को आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करने का, उस जीवन के तत्त्वों का तथा उन तत्त्वों का अनुसरण करते समय जानते-अनजानते हो जाने वाली गलतियों को सुधार कर फिर से वैसा न करने का उपदेश दिया है । यह हो सकता है कि भिन्न-भिन्न संप्रदायप्रवर्तकों की कथन-शैली भिन्न हो, भाषा भिन्न हो और विचार में भी न्यूनाधिकता हो; पर यह कदापि संभव नहीं कि आध्यात्मिक जीवन-निष्ठ उपदेशकों के विचार का मूल एक न हो । इस जगह 'आवश्यक-क्रिया' प्रस्तुत है । इस लिये यहाँ सिर्फ उस के सम्बन्ध में ही भिन्न-भिन्न संप्रदायों का विचार-साम्य दिखाना उपयुक्त होगा । यद्यपि सब प्रसिद्ध संप्रदायों की सन्ध्या का थोड़ा-बहुत उल्लेख करके उन का विचार-साम्य दिखाने का इरादा था; पर यथेष्ट साधन न मिलने से इस समय थोड़े में ही संतोष कर लिया जाता है । यदि इतना भी उल्लेख पाठकों को रुचिकर हुआ तो वे स्वयं ही प्रत्येक संप्रदाय के मूल ग्रन्थों को देख कर प्रस्तुत विषय में अधिक जानकारी कर लेंगे। यहाँ सिर्फ जैन, बौद्ध, वैदिक और जरथाश्ती अर्थात् पारसी धर्म का वह विचार दिखाया जाता है ।
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