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प्रतिक्रमण सूत्र ।
२४.
की तीन स्तुतियाँ पढ़े । फिर 'नमुत्थुणं' कह कर खमासमणपूर्वक 'इच्छा' कह कर ' स्तवन भएँ' कहे | बाद गुरु के 'भणह' कहने पर आसन पर बैठ कर 'नमोऽर्हसिद्धा ०' पूर्वक बड़ा स्तवन बोले । पीछे एक-एक खमासमण दे कर आचार्य, उपाध्याय तथा सर्व साधु को वन्दन करे | फिर खमासमणपूर्वक 'इच्छा' कह कर 'देवसियपायच्छित्तविसुद्धिनिमित्तं. काउस्सग्ग करूँ ? " कहे । फिर गुरु के 'करह' कहने के बाद 'इच्छं' कह कर 'देवसि अपायच्छित्तविसुद्धिनिमित्तं करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थ०' कह कर चार लोगस्स का काउस्सग करके प्रगट लोगस्स पढ़े | फिर खमासमण - पूर्वक 'इच्छा ० ' कह कर 'खुद्दोवद्दवउड्डावणनिमित्तं काउस्सगं करेमि, अन्नत्थ ० ' कह कर चार लोगस्स का काउस्सग्ग करके प्रगट लोगस्स पढे । फिर खमासमण - पूर्वक स्तम्भन पार्श्वनाथ का 'जय वीयराय' तक चैत्य-वन्दन करके 'सिरिथंभणयट्टियपाससामिणो' इत्यादि
दो गाथाएँ पढ़ कर खड़े हो कर वन्दन तथा 'अन्नत्थ०' कह कर चार लोगस्स का काउस्सम्ग करके प्रगट लोगस्स पढ़े । इस तरह दादा जिनदत्त सूरि तथा दादा जिनकुशल सूरि का अलग-अलग काउस्सग्ग करके प्रगट लोगस्स पढ़े । इस के बाद लघु शान्ति पढ़े | अगर लघु शान्ति न आती हो तो सोलह नमुक्कार का काउस्सम्ग करके तीन खमासमण - पूर्वक 'चउक्कसाय०' का 'जय वीराय ०' तक चैत्य - वन्दन करे | फिर 'सर्वमंगल
कह कर पूर्वोक्त रीति से सामायिक करे ।
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