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परिशिष्ट ।
मिक के मुख से प्रथम निश्चय के अनुसार पच्चक्खाण कर ले। बाद 'इच्छामो अणुसहि' कह कर बैठ जाय । और गुरु के एक स्तुति पढ़ जाने पर मस्तक पर अञ्जली रख कर 'नमो खमासमणाण, नमोऽर्हत्०' पढ़े । बाद 'संसारदावानल' या 'नमोऽस्तु वर्धमानाय' 'या परसमयतिमिरतरणिं' की तीन स्तुतिया पढ़ कर 'शक्रस्तव' पढ़े। फिर खड़े हो कर 'अरिहंत चेइयाणं' कह कर एक नमुक्कार का काउस्सग्ग करे । और उस को 'नमोऽर्हत्..... पूर्वक पार कर एक स्तुति पढ़े। बाद 'लोगम्स, सवलोप' पढ़ कर एक नमुक्कार का काउस्सग्ग करके तथा पारके दूसरी स्तुति पढ़े। पीछे 'पुक्खरवर, सुअस्स भगवओ' पढ़ कर एक नमु क्कार का काउस्सग्ग पारके तीसरी स्तुति कहे । तदनन्तर 'सिद्धाण बुद्धाणं, वेयावच्चगराणं' बोल कर एक नमुक्कार का काउस्सग्ग 'नमोऽर्हत्'-पूर्वक पारके चौथी स्तुति पढे । फिर 'शक्रस्तव' पढ़ कर तीन खमासमण-पूर्वक आचार्य, उपाध्याय तथा सर्व साधुओं को वन्दन करे ।
यहाँ तक रात्रि-प्रतिक्रमण पूरा हो जाता है । और विशेष स्थिरता हो तो उत्तर दिशा की तरफ मुख करके सीमन्धर स्वामी का 'कम्मभूमीहिं कम्मभूमीहिं' से ले कर 'जय वीयराय०' तक संपूर्ण चैत्य-वन्दन तथा 'अरिहंत चेइयाणं०' कहे और एक नमुक्कार का काउस्सग्ग करके तथा उस को पारके सीमन्धर स्वामी की एक स्तुति पढ़े ।
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