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प्रतिक्रमण सूत्र ।
गुरु के 'पडिक्कमह' कहने के बाद 'इच्छं' कह कर 'तस्स मिच्छा मि दुक्कडं' कहे। बाद प्रमाजर्नपूर्वक आसन के ऊपर दक्षिण जानू को ऊँचा कर तथा वाम जानू को नीचा करके बैठ जाय और 'भगवन् सूत्र भणु ?' कहे । गुरु के 'भणह' कहने के बाद 'इच्छं' कह कर तीन-तीन या एक-एक वार नमुक्कार तथा 'करेमि भंते' पढ़े। बाद 'इच्छामि पडिक्कमिउं जो मे राइओ' सूत्र तथा 'वंदित्त' सूत्र पढ़े। बाद दो वन्दना दे कर 'इच्छा' कह कर ‘अब्भुट्टिओमि अभिंतर राइयं खामेउँ?' कहे । बाद गुरु के 'खामेह' कहने के बाद 'इच्छं' कह कर प्रमार्जनपूर्वक घुटने टेक कर दो बाहू पडिलेहन कर वाम हाथ से मुख के आगे मुहपत्ति रख कर दक्षिण हाथ गुरु के सामने रख कर शरीर नमा कर 'जं किंचि अपत्तियं' कहे । बाद जब गुरु 'मिच्छा मि दुक्कडं' कहे तब फिर से दो वन्दना देवे । और 'आयरिय उवज्झाए' इत्यादि तीन गाथाएँ कह कर 'करेमि भंते, इच्छामि ठामि, तस्स उत्तरी, अन्नत्थ' कह कर काउस्सग्ग करे । उस में वीर-कृत पाड्मासी तप का चिन्तन किम्बा छह लोगस्स या चौबीस नमुक्कार का चिन्तन करे । और जो पच्चक्खाण करना हो तो मन में उस का निश्चय करके काउस्सग्ग पारे तथा प्रगट लोगस्स पढे। फिर उक. आसन से बैठ कर मुहपत्ति पडिलेहन कर दो वन्दना दे कर सकल तीर्थों को नामपूर्वक नमस्कार करे और 'इच्छाकारण संदिसह भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण कराना जी' कह कर गुरु-मुख से या स्थापनाचार्य के सामने अथवा वृद्ध साध
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