SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 482
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ \ प्रतिक्रमण सूत्र । अगर इस से भी अधिक स्थिरता हो तो सिद्धाचल जी का चैत्यवन्दन कहके प्रतिलेखन करे । यही क्रिया अगर संक्षेप में करनी हो तो दृष्टि - प्रतिलेखन करे और अगर विस्तार से करनी हो तो खमासमण - पूर्वक 'इच्छा' कहे और मुहपत्ति - पडिलेहन, अब पहिलेहन, स्थापनाचार्य - पडिलेहन, उपधि-पडिलेहन तथा पौधशाला का प्रमार्जन करके कूड़े-कचरे को विधिपूर्वक एकान्त में रख दे और पीछे 'इरियावहियं' पढे । २० सामायिक पारने की विधि | खमासमण-पूर्वक मुहपत्ति पडिलेहन करके फिर खमा - समण कहे | बाद 'इच्छा' कह कर 'सामायिक पाऊँ' ? कहे । गुरु के 'पुणेो वि कायव्वो' कहने के बाद 'यथाशक्ति' कह कर मासमण - पूर्वक 'इच्छा' कह कर 'सामायिक पारेमिः' कहे । जब गुरु ' आयारो न मोत्तव्यो' कहे तब 'तहत्ति' कह कर आधा अङ्ग नमा कर खड़े ही खड़े तीन नमुक्कार पढ़े और पीछे घुटने टेक कर तथा शिर नमा कर 'भयवं दसन्नमद्दो' इत्यादि पाँच गाथाएँ पढ़े तथा 'सामामिक विधि से लिया' इत्यादि कहे । संध्याकालीन सामायिक की विधि | दिन के अन्तिम प्रहर में पौषधशाला आदि किसी एकान्त स्थान में जा कर उस स्थान का तथा वस्त्र का पंडिलेहन करे । अगर देरी हो गई हो तो दृष्टि- पडिलेहन कर लेवे । फिर गुरु या स्थापनाचार्य के सामने बैठ कर भूमि का प्रमार्जन करके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy