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________________ ३४२ प्रतिक्रमण सूत्र । अष्ट प्रकारी, पूजा करी ने, मानव भव फल लीजे जी निद्धाई देवी, जिनबर सेवी, अष्ट महासिद्धि दीजे जी! आठमनो तप, करतां लीजे, निर्मल केवलनाण जी । 'वारविमल' कवि, सेवक 'नय' कहे, तपथी कोड़ कल्याण जी।४ [ एकादशी की स्तुति । ] एकादशी अति रूअड़ी, गोविंद पूछे नेम । कोण कारण ए पर्व महोटुं, कहो मुजसुं तेम ।। जिनबर कल्याणक अतिघणा, एक सो ने पच्चास ! नेणे कारण ए पर्व महोटुं, करो मौन उपवास ॥१॥ अगीयार श्रावक तणी प्रतिमा, कही ते जिनवर देव । एकादशी एम अधिक सेवो, वन-गजा जिम खे । चोवीस जिनवर सयल सुखकर, जैसा सुरतरु चंग । जम गंग निर्मल नीर जेहवो, करो जिनसुं रंग ॥२॥ (१) अगीयार अंग लखावीये, अगीयार पाठां सार। अगीयार कवली वीटणां, ठवणी पूंजणी सार । चाबखी चंगी विविध रंगी, शास्त्रतणे अनुसार । एकादशी एम ऊजवो, जेम पामीये भवपार ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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