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प्रतिक्रमण सूत्र ।
अष्ट प्रकारी, पूजा करी ने, मानव भव फल लीजे जी निद्धाई देवी, जिनबर सेवी, अष्ट महासिद्धि दीजे जी!
आठमनो तप, करतां लीजे, निर्मल केवलनाण जी । 'वारविमल' कवि, सेवक 'नय' कहे, तपथी कोड़ कल्याण जी।४
[ एकादशी की स्तुति । ]
एकादशी अति रूअड़ी, गोविंद पूछे नेम । कोण कारण ए पर्व महोटुं, कहो मुजसुं तेम ।। जिनबर कल्याणक अतिघणा, एक सो ने पच्चास ! नेणे कारण ए पर्व महोटुं, करो मौन उपवास ॥१॥
अगीयार श्रावक तणी प्रतिमा, कही ते जिनवर देव । एकादशी एम अधिक सेवो, वन-गजा जिम खे । चोवीस जिनवर सयल सुखकर, जैसा सुरतरु चंग । जम गंग निर्मल नीर जेहवो, करो जिनसुं रंग ॥२॥
(१) अगीयार अंग लखावीये, अगीयार पाठां सार। अगीयार कवली वीटणां, ठवणी पूंजणी सार । चाबखी चंगी विविध रंगी, शास्त्रतणे अनुसार । एकादशी एम ऊजवो, जेम पामीये भवपार ॥३॥
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