SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 439
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चैत्य - वन्दन - स्तवनादि । ( १ ) वर कमलनयणी कमलवयणी, कमल सुकोमल काय | भुज दंड चंड अखंड जेहने, समरतां सुख थाय ॥ एकादशी एम मन वशी, गणी 'हर्ष' पंडित शिष्य । शासनदेवा विघन निवारो, संघतणा निश दिस|४| ३४३ [ सिद्धचक्रजी की स्तुति | 7 ( १ ) वीर जिनेसर, भवन दिनेसर, जगदीसर जयकारी जी । श्रेणिक नरपति, आगल जंपे, सिद्धचक्र तप सारी जी ॥ समकित टि, त्रिकरण शुद्धे, जे भविषण आराधे जी । श्रीश्रीपाल नींद परे तस, मंगल कमला बावे जी ॥ १ ॥ ( १ ) अरिहंत बीच सिद्ध सूरि पाठक, साधु चिहुं दिशि सोहे जी । दंसण नाण चरण तप विदिशे, ए नव पद मन मोहे जी ।। आठ पांखडी हृदयांबुज रोपी, लोपी राग ने रीस जी । ॐ ह्रीं पद, एकनी गणीये, नवकारवाली बीस जी ॥२॥ ( १ ) । आसो चैतर सुदी सातमथी, मांडी शुभ मंडाण जी । नव निधि दायक, नव नव आंबिल, एम एकाशी प्रमाण जी || देव- वन्दन पडिक्कमणुं पूजा, स्नात्र महोत्सव चंग जी । ए विधि सघलो, जिहां उपदिश्यो, प्रणमुं अंग उपांग जी ॥ ३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy