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चैत्य - वन्दन - स्तवनादि ।
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वर कमलनयणी कमलवयणी, कमल सुकोमल काय | भुज दंड चंड अखंड जेहने, समरतां सुख थाय ॥ एकादशी एम मन वशी, गणी 'हर्ष' पंडित शिष्य । शासनदेवा विघन निवारो, संघतणा निश दिस|४|
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[ सिद्धचक्रजी की स्तुति | 7 ( १ )
वीर जिनेसर, भवन दिनेसर, जगदीसर जयकारी जी । श्रेणिक नरपति, आगल जंपे, सिद्धचक्र तप सारी जी ॥ समकित टि, त्रिकरण शुद्धे, जे भविषण आराधे जी । श्रीश्रीपाल नींद परे तस, मंगल कमला बावे जी ॥ १ ॥ ( १ )
अरिहंत बीच सिद्ध सूरि पाठक, साधु चिहुं दिशि सोहे जी । दंसण नाण चरण तप विदिशे, ए नव पद मन मोहे जी ।। आठ पांखडी हृदयांबुज रोपी, लोपी राग ने रीस जी । ॐ ह्रीं पद, एकनी गणीये, नवकारवाली बीस जी ॥२॥ ( १ )
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आसो चैतर सुदी सातमथी, मांडी शुभ मंडाण जी । नव निधि दायक, नव नव आंबिल, एम एकाशी प्रमाण जी || देव- वन्दन पडिक्कमणुं पूजा, स्नात्र महोत्सव चंग जी । ए विधि सघलो, जिहां उपदिश्यो, प्रणमुं अंग उपांग जी ॥ ३ ॥
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