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प्रतिक्रमण सूत्र ।
(१) बीज चंद परे, भूगगभूपित, दीपे ललपट चंदा जी ।
गरुड़ जक्ष नारी सुखकारी, निरवाणी सुख कंदा जी। .,बीजतणो तप, करतां भविने, समकित सानिध्यकारी जी। 'धीरविमल' कवि,शिष्य कहे सीख,संघना विधन निवारीजी
[पञ्चमी की स्तुति ।।
नेमी जिनेसर, प्रभु परमेसर, वंदो मन उल्लास जी। श्रावण सुदी, पंचमी दिन जनम्या, हुओ विजाप्रकाश जी। जन्म महोच्छव,करवा मुरपति, पांच रूप करी आवे जी। मेरु शिरपर, उत्सव करीने, विबुध सयल सुख पावे जी ॥१॥
श्रीशत्तरंजय, गिरिनार वंदूं, कंचन गिरि वैभार जी। समेतशिखर, अशापद आबू, तारंग गिरिने जुहार जी । श्रीकलार्धा, पास मंडोवर, शंखेसर प्रभु देव जी । सयल तीरथर्नु, ध्यान धीजे, अहानिश कीजे सेव जी ॥२॥
वरदत्त ने गुणमंजरी परबंध, नेमी जिनेसर दाख्यो जी! पंचमी तप करतांसुख पाम्बा, सुत्र सकलमां भांख्यो जी। नमो नाणस्स इम, गणणुं गणीये, विधि सहित तप कीजे जी। उलट धरी ऊजमणुं करतां, पंचमी गति सुख लीजे जी॥३॥
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