SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 435
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चैत्य - वन्दन - स्तवनादि । ३३९ एम अमे तुम गुण गोठसुं, रंगे राच्या ने वली माच्या रे । ते केम पर सुर आदरूं, जे परनारी -वश राच्या रे ॥ गि० ॥४॥ तुं गति तुं मति आसरो, तुं आलंबन मुझ प्यारो रे । 'वाचकजश' कहे माहरे, तुं जीव जीवन आधारो रे ॥ गि०॥५॥ [ दूज की स्तुति । ] (१) जंबूद्वीपे अहनिश दीपे, दोय सूरज दोय चंदा जी । तास विमाने, श्रीरिषभादिक, शाशता जिनचंदाजी ॥ तेह भणी उगते शशी निरखी, प्रणमे भवी जन वृंदा जी । बीज आराधो, धर्मनी बीजे, पूजी शान्ति जिणंदा जी ॥ १ ॥ (१) द्रव्य भाव दोय, भेदे पूजो, चोवीशे बंधन दोय, करने दूरे, पाम्या दुष्ट ध्यान दोय, मत्त मातंगज, भेदन बीजत दिन जेह आराधे, ते जगमां चिर नंदा जी ॥ २ ॥ जिनचंदाजी | परमाणंदा जी ॥ मत्त महेंदा जी । (१) दुविध धर्म जिन - राज प्रकाशे, समवसरण मंडाण जी । निश्चय ने, व्यवहार वेहु सुं, आगम मधुरी वाणी जी ॥ नरक तिर्यंच गति, दोय न होवे, जे बीज तिथि आराधे जी । दुविध दया तस, थावर केरी, करता शिव दुख साधे जी ॥ ३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org...
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy