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________________ अजित - शान्ति स्तवन । २८१ * सहावलड्डा समप्पइट्ठा, अदोसदुट्ठा गुणेहिं जिट्ठा । पसायसिट्ठा तवेण पुड्डा, सिरीहिं इड्डा रिसीहिं जुट्ठा |३३| ( वाणवासिआ । ) ते तवेण घुसव्वपावया, सव्वलोअहिअमूलपावया । संधुआ अजिअसंतिपायया, हुतु मे सिवसुहाण दायया । ३४ | (अपरांतिका 1) अन्वयार्थ - 'छत्त' छत्र, 'चामर' चामर, “पडाग' पताका, 'जूअ ' यज्ञस्तम्भ और 'जव' यव से 'मंडिआ' अलंकृत; 'झयवर' श्रेष्ठ ध्वजदण्ड, 'मगर' मगर, 'तुरय' अश्व और 'सिरिवच्छ" श्रीवत्सरूप 'सुलंछणा' श्रेष्ठ लान्छन वाले; 'दीव' द्वीप, 'समुह' समुद्र, 'मंदर' मेरु पर्वत और 'दिसागय' दिग्गजों से 'सोहिआ ' शोभमान; 'सत्थिअ' स्वस्तिक, 'वसंह' वृषभ, 'सीह' सिंह, 'रह' रथ और 'चक्कर' प्रधान चक्र से "अंकिया' अङ्कित [ऐसे, तथा--] 'सहावलट्ठा' स्वभाव से सुन्दर, 'समप्पइट्ठा' समभाव में स्थिर, 'अदोसदुट्ठा' दोषरहित, 'गुणेहिं जिट्ठा' गुणों से बड़े, 'पसायसिट्ठा' प्रसाद गुण से श्रेष्ठ, 'तत्रेण पुट्ठा' तप से पुष्ट, 'सिरीहिं इट्ठा' लक्ष्मी से पूजित, 'रिसीहिं जुट्ठा' ऋषियों से सेवित [ऐसे, तथा - ] * स्वभावलष्टाः समप्रतिष्ठा:, अदोषदुष्टाः गुणैज्येष्ठाः । प्रसाद श्रेष्ठास्तपसा पुष्टाः, श्रीभिरिष्टा ऋषिभिर्जुष्टाः ॥ ३३ ॥ ते तपसा धुतसर्वपापकाः, सर्वलोकहितमूलप्रापकाः । संस्तुताः अजितशान्तिपादाः भवन्तु मे शिवसुखानां दायकाः ॥ ३४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org "
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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