SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 376
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रतिक्रमण सूत्र । देवों को विनोद कराने में दक्ष, ऐसी अनेक प्रधान अप्सराएँ भक्ति-वश आ कर आपस में मिलीं । मिल कर उन्हों ने शुद्ध षड्ज स्वर का गीता गाना शुरू किया, जो बंसी तथा बीन के स्वर और ताल के मिलाने वाला त्रिपुष्कर नामक वाद्य के मनोहर शब्दों से युक्त, कङ्कणों, मेखलाओं और झाँझरों के अभिराम शब्दों से मिश्रित तथा पैर के जालीबन्ध घुँघरूओं से कर्ण प्रिय था । इस प्रकार का संगीत चल ही रहा था कि नाच करने वाली देवाङ्गनाओंने अनेक प्रकार के हाव भाव और विश्रम वाले अभिनय से नाचना आरम्भ किया और नाच कर उन्हें ने ऋषियों, देवों और देवाङ्गनाओं के द्वारा सादर स्तुत, वन्दित तथा प्रणत और सर्वोत्तम शासन के प्रवर्तक ऐसे जिस भगवान् 3 के चरणों को वन्दन किया, उस तीन लोक के शान्तिकारक तथा सकल पाप - दोष रहित श्रीशान्तिनाथ जिनेश्वर को मैं नमन करता हूँ ॥ ३० ॥ ३१ ॥ † छत्तचामरपडागजूअजवमंडिआ, झयवरमगरतुरयसिरिवच्छसुलंछणा | दीवस मुद्दमंदर दिसागयसोहिआ, सत्थिअवसहसहिरहचक्कवरंकिया || ३२ || (ललिअयं ।) २८० + छत्रचामरपताकायूपयवमण्डित':, ध्वजवर मकरतुरगश्रीवत्सलाञ्छनः । द्वीपसमुद्रमन्दरदिग्गजशोभिताः, स्वस्तिकवृषभसिंहरथचक्रवराङ्किताः ॥३२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy