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प्रतिक्रमण सूत्र । ___ 'तवेण' तप से 'धुअसव्वपावया' सब पापों को धोये हुए, 'सव्वलोअ' सब लोगों को 'हियमूलपावया हित का असली रास्ता दिखाने वाले, [और] 'संथुआ' अच्छी तरह स्तुति किये गये
ऐसे] 'ते' वे 'अजिअसंतिपायया' पूज्य अजितनाथ तथा - शान्तिनाथ 'मे' मुझ को 'सिवसुहाण' मोक्ष-सुख के 'दायया'
देने वाले 'हंतु' हो ॥ ३२-३४ ॥
... भावार्थ-इन ललितक, वानवासिका तथा अपरान्तिका नामक तीन छन्दों में श्रीअजितनाथ तथा शान्तिनाथ दोनों की स्तुात है। पहले छन्द में उन के छत्र, चामर आदि शारीरिक लक्षणों का वर्णन है, दूसरे में स्वभाव-सौन्दर्य आदि आन्तरिक गुणों का व वितियों का वर्णन है और तीसरे में उन के निर्दोषत्व गुण की तथा हित-मार्ग दरसाने के गुण की प्रशंसा करके कवि ने उन से सुख के लिये प्रार्थना की है।
जिन के अङ्गों में छत्र, चामर, ध्वजा, यज्ञस्तम्भ, जो, ध्वजदण्ड, मकर, अश्व, श्रीवत्स, द्वीप, समुद्र, सुमेरु पर्वत, दिग्गज, स्वस्तिक, बैल, सिंह, रथ और चक्र के उत्तम चिह्न व लक्षण हैं, स्वभाव जिन का उत्तम है, समभाव में जिन की “स्थिरता है, दोष जिन से दूर हो गये हैं, गुणों से जिन्हों ने महत्ता प्राप्त की है, जिन की प्रसन्नता सर्वोत्तम है, जिन को तपस्या में ही सन्तोष है. लक्ष्मी ने जिन का आदर किया है, मुनियों ने जिन की सेवा की है, जिन्हों ने तप के बल से सब
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