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________________ अजित - शान्ति स्तवन । २०७ भावार्थ - इस छन्द का नाम सोपानक है। इस में केवल श्री शान्तिनाथ की स्तुति है । जो उत्तम तथा अज्ञान, हिंसा आदि तमोगुण के दोषों से रहि- ऐसे शुद्ध ज्ञान-यज्ञ को धारण करने वाला है, जो सरलता, कोमलता, क्षमा, निर्लोभता और समाधि का भण्डार है, जो विकारों को शान्त करने में प्रबल तथा तीर्थंकर है, जो शान्ति के कर्ता तथा जनों में श्रेष्ठ है, उस शान्तिनाथ भगवान् को मैं प्रणाम करता हूँ और प्रार्थना करता हूँ कि वह श्री शान्तिनाथ - मुझ को शान्ति तथा समाधि का व प्रदान करे ॥ ८ ॥ * सावत्थिपुव्वपत्थिवं च वरहत्थिमत्थयपसत्थवित्थिन्नसंथियं, थिरसरित्थवच्छं मयगललीलायमाणवरगंधहत्थि - पत्थाणपत्थियं संथवारिहं । हत्थिहत्थबाहुं धंतकणगरुअगनिरुवहयपिंजरं पवरलक्खणोवचियसोमचारुरूवं, सुइमुहमणाभिरामपरमरमणिज्जव र देवदुंदुहिनिनाय महुरयरसुहगिरं ॥ ९ ॥ ( वेड्टओ ) * श्रावस्ती गर्थिवं च वरहस्तिमस्तक शस्तावस्तीर्ण संस्थितं, स्थिर श्रीवत्यक्ष मदकललीलायमानवरगन्धहस्तिप्रस्थानप्रस्थितं संस्तचाईम् । हस्तिहस्त बाहुं ध्मातकनकरुचकनिरुपहतपिअरं प्रवरलक्षणोपचित सौम्यचारुरूपं श्रतिसुखमनोऽभिरामपरमरमणीयवर देवदुन्दुभिनिनादमधुरतरशुभगिरम् ॥९॥ ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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