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________________ प्रतिक्रमण सूत्र । अजिअं जिआरिगणं, जिअसव्वभयं भवोहरिजं । पणमामि अहं पयओ, पावं पसमेउ मे भयवं ॥ १० ॥ (रासालुद्धओ) अन्वयार्थ -- 'सावत्थिपुव्वपत्थिवं' पहले श्रावस्ती नगरी के राजा, 'वरहत्थि' प्रधान हाथी के 'मत्थय' मस्तक के समान 'पसत्थ' प्रशस्त और 'वित्थिन्न' विस्तीर्ण 'संथिय' संस्थान वाले, 'थिरसरित्थवच्छं' वक्षःस्थल में श्रीवत्स के स्थिर चिह्न वाले, 'मयगल' मदोन्मत्त और 'लीलायमाण' लीलायुक्त 'वरगंधहत्थि' प्रधान गन्धहस्ति की 'पत्थाण' चाल से 'पत्थियं' चलने वाले, 'संथवारिहं स्तवन करने योग्य, 'हस्थिहत्थबाहु' हाथी की सूँड़ के समान बाहु वाले, "धंत तपाये हुए 'कणकरुअग' सुवर्ण के आभरण के समान 'निरुवहयपिंजरं ' स्वच्छ पीले वर्ण वाले, 'पवरलक्खणोवचिय' श्रेष्ठ लक्षणों से युक्त 'सोम' सौम्य और 'चारु - रूवं' सुन्दर रूप वाले 'च' तथा 'सुइसुह' कान को सुखकर 'मणाभिराम' मन को आनन्दकारी और 'परमरमणिज्ज' अतिरमणीय [ऐसे ] 'वरदेवदुंदुहिनिनाय' श्रेष्ठ देव-दुन्दुभि के नाद के समान 'महुरयरसुहगिरं' अतिमधुर और कल्याणकारक वाणी वाले, तथा'जिआरिगणं' वैरिओं के समूह को जीते हुए. 'जिअ सव्वभयं सब भय को जीते हुए' भवोहरिडं' संसाररूप प्रवाह के वैरी [ऐसे ] २५८ + अजितं जितारिंगणं, जितविभयं भवौघरिपुम् । प्रणमाम्यहं प्रयतः, पा प्रशमयतु मे भगवन् ॥ १० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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