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________________ अजित-शान्ति स्तवन । ५५. * अरइरइतिमिरविरहिअमुवरयजरमरणं, सुरअसुरगरुलभुयगवइपययपणिवइयं । __ अजिअमहमवि अ सुनयनयनिउणमभयकरं, सरणमुवसरिअ भुविदिविजमहिअं सययमुवणमे ॥७॥ (संगययं) अन्वयार्थ-- 'अरइ' अरति से 'रइ' रति से और 'तिमिर' अज्ञान से 'विरहिअम्' रहित, 'उवरयजरमरणं' जरा और मरण से रहित, 'सुर' देव 'असुर असुरकुमार ‘गरुल' सुर्वणकुमार तथा 'भुयग नागकुमार के 'वइ पतियों से ‘पयय' आदरपूर्वक 'पणिवइयं' नमस्कार किये गये, 'सुनयनयः अच्छी नीति और न्याय में 'निउणम्' निपुण, 'अभयकर भय मिटाने वाले 'अ' और 'भुविदिविजमहिअ पृथ्वी में तथा स्वर्ग में जन्मे हुए प्राणियों से पूजित [ऐसे] 'आजअम्' अजितनाथ की 'सरणम्' शरण 'उवसरिअ पाकर 'अहमवि' मैं भी 'सययम् सदा ‘उवणमे' नमन करता हूँ ॥ ७॥ - भावार्थ--यह संगतक नाम का छन्द है । इस में केवल श्रीअजितनाथ का गुण-कीर्तन है। * अरतिरतितिमिरविरहितमुपातजरामरणं, सुरासुरगरुडभुजगपतिप्रयतप्राणपतितम् । अजितमहमपि च सुनयनयनिपुणमभयकरं, शरणमुपसृत्य भुविदिविजमहितं सततमुपनमामि ॥ ७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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