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प्रतिक्रमण सूत्र । प्रभाव वाला, बड़े बड़े योगयों के योग्य अणिमा आदि सिद्धियों को दिलाने वाला और शान्तिकारक, इस प्रकार का श्रीअजितनाथ तथा शान्तिनाथ को किया हुआ जो नमस्कार है सो सदा मुझ को शान्ति देवे ॥५॥ * पुरिसा जइ दुक्खवारणं, जइ य विमग्गह सुक्खकारणं । अजिअंसंतिं च भावओ, अभयकरे सरणं पवज्जहा ॥६॥
. ( मागहिआ) अन्वयार्थ----'पुरिसा' हे पुरुषो ! 'जई' अगर 'दुक्खवारणं' दुःख-निवारण का उपाय 'य' तथा 'सुक्खकारणं सुख का उपाय 'विमग्गह' ढूँढ़ते हो तो] 'अभयकरे' अभय करने वाले ऐसे 'अजिअं संतिं च' अजितनाथ तथा शान्तिनाथ दोनों की 'सरणं' शरण 'भावओ' भावपूर्वक 'पवज्जहा' प्राप्त करो ॥६॥
भावार्थ-इस छन्द का नाम मागधिका है । इस में दोनों भगवान् की शरण लेने का उपदेश है ।
हे पुरुषो ! अगर तुम दुःख-निवारण के और सुख प्राप्त करने की खोज करते हो तो श्रीअजितनाथ और शान्तिनाथ, दोनों की भाक्तपूर्वक शरण लो, क्योंकि वे अभय करने वाले हैं ॥६॥
* पुरुषाः ! यदि दुःखवारणं, यद् िच विमार्गयथ मौख्यकारणम् । .. अजितं शान्ति च भावतोऽभयकरौ शरणं प्रपद्यध्वम् ॥६॥
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