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अजित-शान्ति स्तवन ।
२५३ * किरिआविहिसंचिअकम्मकिलेसविमुक्खयरं, .... .. अजिअं निचिअंच गुणेहिं महामुणिसिद्धिगयं ।
अजिअस्स य संतिमहामुणिणो वि अ संतिकरं, सययं मम निव्वुइकारणयं च नमसणयं ।।५।। (आलिंगणयं).
अन्वयार्थ --'किरिआविहि' क्रियाएँ कर के 'संचिअ' इकडे किये हुए 'कश्मकिलेस' कर्मरूप क्लश से 'विमुक्खयरं' छुटकारा दिलाने वाला, 'गुणेहिं' गुणों से' 'निचिअं' परिपूर्ण 'अजिअं' किसी से नहीं जीता हुआ, 'महामुणिसिद्धिगयं' महायोगी की सिद्धियों से युक्त 'च' और 'संतिकर' शान्ति करने वाला, [ ऐसा ] 'अजिअम्स अजितनाथ को किया हुआ 'य' तथा 'संतिमहामुणिणो वि' शान्तिनाथ महामुनि को भी किया हुआ 'नमंसणयं' नमस्कार 'सययं हमेशा 'मम' मेरी 'निव्वुइ' शान्ति का 'कारणयं' कारण हो] ॥ ५ ॥ - भावार्थ---इस छन्द का नाम आलिङ्गनक है। इस में श्रीआजितनाथ तथा शान्तिनाथ दोनों को किये जाने वाले नमस्कार की महिमा गायी गई है। . अनेक क्रियाओं के द्वारा संचय किये हुए कर्म-क्लेशों से छुड़ाने वाला, अनेक गुणों से युक्त, अजेय अर्थात् सब से अधिक
* क्रियाविधिसंचितकर्मक्लेशविमोक्षकर,-.. - । माजितं निचितं च गुणैर्महामुनिसिद्धिगतम् ।
अजितस्य च शान्तिमहामुनेरपि च शान्तिकर, सततं मम नितिकारणकं च नमस्यनकम ॥ ५॥
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