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प्रतिक्रमण सूत्र ।
भावार्थ--इस श्लोक नामक छन्द में दोनों तीर्थंकरों को नमस्कार किया है। ..
जिन के न तो किसी तरह का दुःख बाकी है और न किसी तरह का पाप और जो हमेशा अजेय-नहीं जीते जा सकने वाले तथा शान्ति धारण करने वाले हैं, ऐसे श्रीआजितनाथ तथा शान्तिनाथ दानों को नमस्कार हो ॥ ३ ॥ * अजिअजिण सुहप्पवत्तणं, तव पुरिसुत्तम नामंकित्तणं । तह य धिइमइप्पवत्तणं, तव य जिणुत्तम संति कित्तणं॥४॥
(मागहिआ) अन्वयार्थ----'पुरिसुत्तम' पुरुषों में उत्तम ‘अजिअजिण' हे अजितनाथ जिन ! 'तव' तेरा 'नामकित्तणं' नाम-कीर्तन 'य' तथा 'जिणुत्तम संति' हे जिनोत्तम शान्तिनाथ ! 'तव' तेरा 'कित्तणं' नाम-कीर्तन 'सुहप्पवत्तणं' सुख को प्रवर्ताने वाला 'तह य' तथा 'धिहमइप्पवत्तणं' धीरज और बुद्धि को प्रवर्ताने चाला है ॥ ४ ॥
भावार्थ--इस छन्द का नाम मागधिका है । इस में दोनों तीर्थकरों के स्तवन की महिमा का वर्णन है।। . हे पुरुषों में उत्तम श्रीअजितनाथ ! तथा जिनों में उत्तम श्रीशान्तिनाथ ! तुम दोनों के नाम का स्तवन सुख देने वाला तथा धैर्य और बुद्धि प्रकटाने वाला है ॥ ४ ॥
* अजितजिन ! सुखप्रवर्तनं, तव पुरुषोत्तम ! नामकीत्तनम् ।
तथा च धृतिमतिप्रवर्तनं, तव च जिनोत्तम ! शान्ते कीर्तनम् ॥ ४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org