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प्रतिक्रमण सूत्र ।
हुआ आहार ग्रहण करना। (४) गृहस्थसंसृष्ट-घी, तेल आदि से छोंके हुए शाक-दाल आदि लेना या गृहस्थ ने अपने लिये जिस पर घी आदि लगाया हो ऐसी रोटी आदि को लेना।। (५) उत्क्षिप्तविवेक---ऊपर रक्खे हुए गुड़ शक्कर आदि को उठा . लेने पर उन का कुछ अंश जिस में लगा रह गया हो ऐसी रोटो . आदि को लेना। (६) प्रतीत्यम्रक्षित-भोजन बनाते समय जिन चीजों पर सिर्फ उँगली से घी तेल आदि लगाया गया हो ऐसी चीजा को लेना । (७)गारिष्ठापनिकाकार--अधिक हो जाने के कारण जिस
आहार को परठवना पड़ता हो तो परठवन के दोष से बचने के लिये उस आहार को गुरु की आज्ञा से ग्रहण कर लेना । (८) महत्तराकार । (९) सर्वसमाधिप्रत्ययाकार । - बियासण में चौदह आगार हैं:-(१) अनाभोग। (२) सहसाकार। (३) सागारिकाकार-जिन के देखने से आहार करने की शास्त्र में मनाही है, उन के उपस्थित हो जाने पर स्थान बदल कर दूसरी बगह चले जाना । (४) आकुञ्चनप्रसारण-सुन्न पड़े जाने आदि कारण से हाथ-पैर आदि अङ्गों का सिकोड़ना या फैलाना। (५) गुर्वभ्युस्थान--किसी पाहुने मुनि के या गुरु के आने पर विनय-सत्कार के लिये उठ जाना । (६) पारिष्ठापनिकाकार । (७) महत्तराकार। (८) सर्वसमाधिप्रत्ययाकार । (९) पानलेप--दाल आदि का माँड़ तथा इमली, द्राक्षा आदि का पानी । (१०) अलेप-साबूदाने आदि का धोवन तथा छाँछ का निथरा हुआ पानी। (११) अच्छ
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