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पच्चक्खाण सूत्र |
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सहसागारेणं, सागांरिआगारेणं, आउंटणपसारणेणं, गुरु अब्भुट्ठाणेणं, पारिट्ठावणियागारेणं', महत्तर (गारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं, पाणस्से लेवेण वा, अलेवेण वाँ, अच्छेण वा, बहुलेवेण वा, ससित्थेण वा, असित्थेण वा वोसिरह ।
भावार्थ — इस पच्चक्खाण में नमुक्कारसहिअ, पोरिसी आदि का पच्चक्खाण किया जाता है; इस लिये इस में सात आगार भी पोरिसी के ही हैं । एगासण- बियासण में विगइ का पच्चक्खाण करने वाले के लिये ' विगइओ' इत्यादि पाठ है । विगह पच्चक्खाण में नौ आगार हैं:
(१) अनाभोग । (२) सहसाकार । (३) लेपालेप-घृत आदि लगे हुए हाथ, कुडछी आदि को पोंछ कर उस से दिया आहार' कह कर पच्चक्खाण करना चाहिए। दुविहाहार में जीमने के बाद पानी तथा मुखवास लिया जाता है, इस लिये इस में 'पाणं' तथा 'साइमं' नहीं बोला जायगा । यदि चउव्विहाहार करना हो तो चडव्विपि आहारं ' कहना चाहिए । इस में जीमने के बाद चारों आहारों का है; इस लिये इस में 'असणं, पाणं' आदि सब कहना चाहिए ।
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त्याग किया जाता
-यह आगार एकासण, बियासण, आयंबिल, विगई, उपवास, आदि पच्चक्खाण के लिये साधारण हैं । इस लिये चव्विहाहार उपवास के समय गुरु की आज्ञा से मात्र अचित्त जल, तिविहाहार उपवास में अन्न और पानी और आयंबिल में विगइ, अन्न और पानी लिये जाते हैं ।
२ - 'पाणस्स लेवेण वा' आदि छह आगार एकासण करने वाले को व्विहाहार और तिविहाहार के पच्चक्खाण में और दुविहाहार में अचित्त भोजन और अचित्त पानी के लेने वाले को ही पढ़ने चाहिए ।
३- ' लेवाडेण वा अलेवाडेण वा ' इत्यपि पाठः ।
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