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प्रतिक्रमण सूत्र ।
+ उग्गए सूरे, नमुक्कार सहिअं, पोरिसिं, साढपोरिसिं, मुट्ठिसहिअं, पच्चक्खाइ । उग्गए सूरे, चउव्विर्हपि आहारं असणं, पाणं, खाइमं, साइमं; अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं । विगईओ पच्चक्खाइ; अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, लेवालेवेणं, गिहत्थसंसद्वेणं, उक्खित्तविवेगेणं, पहुंच्चमक्खिएणं, पारिट्ठावाणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवात्तयागारेणं । बियाँसणं पच्चक्खाइ; तिविहंपि आहारं असणं, खाइमं, साइमं अन्नत्थणाभोगेणं,
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↑ विकृतीः । लेपालेपेन । गृहस्थसंसृष्टेन । उत्क्षिप्तीववेकेन । प्रतीत्य नक्षितेन । पारिष्ठापनिकाकारेण । द्वयशनम् । त्रिविधमपि । सागारिकाकारेण । आकुञ्चनप्रसारणेन । गुर्वभ्युत्थानेन । पानस्य लेपेन वा । अलेपेन वा । अच्छेन वा । बहुलेपेन वा । ससिक्थेन वा । असिक्थेन वा ।
१ - विकार पैदा करने वाली वस्तुओं को 'विकृति' कहते हैं। विकृति भक्ष्य और अभक्ष्य दो प्रकार की हैं। दूध, दही, घी, तेल, गुण और पक्कान्न, ये छह भक्ष्य - विकृतियाँ हैं । मांस, मय, मधु और मक्खन ये चार अभक्ष्य-विक्रतियाँ हैं | अभक्ष्य का तो श्रावक को सर्वथा त्याग होता ही है; भक्ष्य-विकृति भी एक या एक से अधिक यथाशक्ति इस पच्चक्खाण के द्वारा त्याग दी जाती है ।
'२ – 'लेवालेवेणं' से ले कर पाँच आगार मुनि के लिये हैं, गृहस्थ के लिये नहीं । ३ - एगासण के पच्चक्खाण में 'बियासणं' की जगह पर 'एगासणं' पाठ पढ़ना चाहिए ।
3 ४ - तिविहाहार में जीमने के बाद सिर्फ पानी लिया जा सकता है, इस लिये 'पाणं' नहीं कहना चाहिए । यदि दुविहाहार करना हो तो 'दुविहपि
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