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पच्चक्खाण सूत्र ।
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तीन बार औटा हुआ स्वच्छ पानी। (१२) बहुलेप-चावल आदि का चिकना माँण । (१३) ससिक्थ-आटे आदि से लिप्त हाथ . या वरतन का धोवन। (१४) असिक्थ--आटा लगे हुए हाथ या वरतन का कपड़े से छना हुआ धोवन ।
[(५)-प्रायंबिल-पच्चक्खःण' ।] उगए सूरे, नमुक्कारसहिअं, पोरिस , साढपोरिसिं,मा?सहि पच्चक्खाइ। उग्गए सूरे, चउनिहंपि आहारं-असणं, पाणं, खाइमं, साइमं; अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं, सासमाहिवत्तियागारेणं । आयंबिलं पच्चक्खाइ; अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारणं, लेवालेणं, निहत्थसंसट्टेणं, उक्खित्तविवेगेणं, पारिट्ठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सबसमाहिवत्तियागारेणं । एगासणं परवाइ:तिविहंपि आहारअसणं, खाइमं, साइमं; अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, सागारियागारेणं, आउंटणपसारणेणं, गुरुअब्भुट्ठाणेणं,
१-इस व्रत में प्रायः नरिस आहार लिया जाता है । चावल, उड़द, या सत्त आदि से इस व्रत को किये जाने का शास्त्र में उल्लेख है । इस का दूसरा नाम 'गोण्ण' मिलता है । [ आव० नि०, गा० १६०३] ।
+ आचामाम्लम् ।
२ -- आयंबिल में एगासण की तरह दुविहाहार का पच्चक्खाण नहीं किया जाता; इस लिये इस में 'तिविहंपि आहारं' या 'चउन्विहंपि आहार पाठ बोलना चाहिए।
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