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प्रतिक्रमण सूत्र ।
५. नियन्त्रित-जिस रोज़ जिस पच्चक्खाण के करने का संकल्प कर लिया
गया हो उस रोज़, रोग आदि अड़चनें आने पर भी वह संकल्पित पच्चक्खाण कर लेना। यह पच्चक्खाण चतुर्दश-पूर्वधर जिनकल्पी और
दश-पूर्वधर मुनि के लिये है; इस लिये इस समय विच्छिन्न है। ५. साकार-आगारपूर्वक-छूट रख कर-किया जाने वाला पच्चक्वाण । १. अनाकार-छूट रक्खे बिना किया जाने वाला पच्चक्खाण । ५. परिमाणकृत -- दत्ती, कवल या गृह की संख्या का नियम करना। ... निरवशेष-चतुर्विध आहार तथा अफीम, तबाखू आदि अनाहार
वस्तुओं का पच्चक्खाण । सांकेतिक-संकेत-पूर्वक किया जाने वाला पच्चक्खाण । मुट्ठी में अँगूठा रखना , मुट्टी बाँधना, गाँठ बाँधना, इत्यादि कई संकेत हैं । सांकेतिक पच्चक्खाण पोरिसी आदि के साथ भी किया जाता है और अलग भी। साथ इस अभिप्राय से किया जाता है कि पोरिसी आदि पूर्ण होने के माद भोजन-सामग्री तैयार न हो या कार्य-वश भोजन करने में विलम्ब हो तो संकेत के अनुसार पच्चक्खाण चलता रहे । इसी से पोरिसी आदि के पञ्चक्खाण में मुठिसहिय इत्यादि कहा जाता है । पोरिसी आदि पच्चक्खाण न होने पर भी सांकेतिक पच्चक्खाण किया जाता है। इस
का उद्देश्य सिर्फ सुगमता से विरति का अभ्यास डालना है। १.. अद्धा पच्च०---समय की मर्यादा वाले, नमुक्कार-साहिब-पोरिसी इत्यादि पच्चक्खाण। -[आ• नियु० गा० १५६३-१५७९: भगवती शतक ७, उद्देश २,सूत्र २७२]
इस जगह साढ पोरिसी, अवड्ढ, और बियासण के पच्चक्खाण दिये गये हैं। ये आवश्यकनियुक्ति गा० १५९७ में कहे हुए दस पच्चक्खाण में नहीं हैं। वे दस पच्च० ये हैं:
१. नमुक्कारसहिय, २. पोरिसी, ३. पुरि ड्ढ, ४. एकासण, ५. एकलठान, ६. आयंबिल, ७. अभत्तट्ठ (उपवास), ८. चरिम, ९. अभिग्रह भौर १०. विगइ । तो भी यह जानना चाहिये कि साढ पोरिसी पच्चक्खाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org