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________________ पच्चक्खाण सूत्र । १७७ भावार्थ--सूरज उगने के समय से ले कर दो घंडी दिन निकल आने पर्यन्त चारों आहारों का नमुक्कारसहिय मुट्टिसहिय पच्चक्खाण किया जाता है अर्थात् नमुक्कार गिन कर मुट्ठी खोलने का संकेत कर के चार प्रकारका आहार त्याग दिया जाता है । वे चार आहार ये हैं:- (१) अशन-रोटी आदि भोजन, (२) पान-दूध पानी आदि पीने योग्य चीजें, (३) खादिम-फल मेवा आदि और (४) स्वादिम--सुपारी, लवङ्ग आदि मुखवास । इन आहारों का त्याग चार आगारों (छूटों) को रख कर किया जाता है । वे चार आगार ये हैं:(१) अनाभोग-बिल्कुल याद भूल जाना । (२) सहसाकारपोरिसी का सजातीय होने से उस के आधार पर प्रचलित हुआ है । इसी तरह अवठ्ठ पुरिमनु के आधार पर और बियासण एकासण के आधार पर प्रचलित है । [धर्मसंग्रह पृ०१९१] । चउविहाहार और तिविहाहार दोनों प्रकार के उपवास अभत्तट्ट हैं । सायंकाल के पाणहार, चउविहाहार, तिविहाहार और दुविहाहार, ये चारों पच्चक्खाण चरिम कहलाते हैं । देसावगासिय पच्चक्खाण उक्त दस पच्चक्खाणों के बाहर है। वह सामायिक और पौषध के पच्चक्खाण की तरह स्वतन्त्र है। देसावगासिय व्रत वाला इस पच्चक्खाण को अन्य पच्चक्खाणों के साथ सुवह-शाम प्रहण करता है । . २-दूसरों को पच्चक्खाण कराना हो तो 'पच्चक्खाइ' और 'वोसिरई' और स्वयं करना हो तो 'पच्चक्खामि' और 'वोसिरामि' कहना चाहिए। १-रात्रि भोजन आदि दोष-निवारणार्थ नमुक्कारसहिअ पच्चक्खाण है। इस की काल-मर्यादा दो घड़ी की मानी हुई है । यद्यपि मूल-पाठ में दो घड़ी का बोधक कोई शब्द नहीं है तथापि परंपरा से इस का काल-मान कम से कम दो घड़ी का लिया जाता है । [ धर्मसंग्रह पृ० १] । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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