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पच्चक्खाण सूत्र ।
५१ - - पच्चक्खाणं सूत्र | दिन के पच्चक्खाण ।
[ (१) नमुक्कार सहिय मुट्ठिसहिय पच्चक्खाण । ] उग्गए सूरे, नमुक्कारसहिअं मुट्ठिसहिअं पच्चक्खाई, चउव्विपि आहारं - असणं, पाणं, खाइमं, साइमं अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेण वोसिरहे ।
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उगते सूर्ये, नमस्कारसहितं मुष्टिसहितं प्रत्याख्याति चतुर्विधमप्याहराम् अशनं, पानं, खादिमं, स्वादिमम्, अन्यत्रानाभोगेन, सहसाकारेण, महत्तराकारेण, सर्वसमाधिप्रत्ययाकारण, व्युत्सृजति ।
१ - पच्चक्खाण के मुख्य दो भेद हैं: - ( १ ) मूलगुण - पच्चक्खाण और (२) उत्तरगुण-पच्चक्खाण । इन दो के भी दो दो भेद हैं: --- (क) सर्व - मूलगुण - पच्च क्खाण और देश- मूलगुण - पच्चक्खाण । (ख) सर्व उत्तरगुण - पच्चक्खाण और देश-उत्तरगुण-पच्चक्खाण । साधुओं के महानत सर्व मूलगुण- पच्चक्खाण और गृहस्थों के अणुदूत देश- मूलगुण-पच्चक्खाण हैं । देश - उत्तरगुण- पच्चक्खाण तीन गुणबूत और चार शिक्षावृत हैं जो श्रावकों के लिये हैं । सर्वउत्तर -गुण- पच्चक्खाण 'अनागत' आदि दस प्रकार का है जो साधु-श्रावक उभय के लिये है । वे दस भेद ये हैं:
१. अनागत - पर्युषणा आदि पर्व में किया जाने वाला अट्टम आदि तप उस पर्व से पहले ही कर लेना जिस से कि पर्व में ग्लान, वृद्ध, गुरु आदि की सेवा निर्बंध की जा सके ।
२. अतिक्रान्त -- पर्व में वैयावृत्य आदि के कारण तपस्या न हो सके तो
पीछे से करना ।
३. कोटिसहित - उपवास आदि पच्चक्खाण पूर्ण होने
वैसा ही पच्चक्खाण करना ।
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बाद फिर से
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