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पोसह पञ्चक्खाण सूत्र । २७३ अव्वावार-पोसह सव्वओ, चउविहे पोसहे ठामि । जावदिवस पज्जुवासामि दुविहं तिविहेणं, मणेणं वायाए कायेणं न करेमि, न कारवेमि । तस्स भते ! पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि ॥१॥
भावार्थ-हे भगवन् ! मैं पौषधव्रत करता हूँ। पहले आहारत्यागरूप पौषध को देश से या सर्वथा, दूसरे शरीर-शुश्रूषात्यागरूप पौषध को सर्वथा, तीसरे ब्रह्मचर्य-पालनरूप पौषध को सर्वथा और चौथे सावध व्यापार के त्यागरूप पौषध को सर्वथा, इस प्रकार चारों पौषध को मैं ग्रहण करता हूँ। .. ग्रहण किये हुए पौषध को मैं दिन-पर्यन्त या दिन-रात्रिपर्यन्त दो करण और तीन योग से पालन करूँगा अर्थात् मन, वचन और काया से पौषधव्रत में सावध व्यापार को न स्वयं करूँगा और न दूसरों से कराऊँगा ।
हे भगवन् ! पहले मैं ने जो पाप-सेवन किया, उस का प्रतिक्रमण करता हूँ, उसकी निन्दा करता हूँ, उस की गहीं करता हूँ और ऐसे पाप-व्यापार से आत्मा को हटा लेता हूँ।
पौषधे तिष्ठामि । यावद्दिवसं पर्युपासे द्विविधं त्रिविधेन मनसा वाचा कायेन न करोमि, न कारयामि । तस्य भदन्त ! प्रतिक्रामामि, निन्दामि, गहें, मात्मानं व्युत्सृजामि ॥१॥
२--सिर्फ दिन का पोषध करना हो तो 'जावदिवसं', दिन-रात का करना हो तो 'जाव अहोरत्त', और सिर्फ रातका करना हो तो 'जाव सेसदिवस अहोरत्तं' कहना चाहिये ।
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