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________________ १७२ प्रतिक्रमण सूत्र । वर्तमान कुछ तीर्थ--सम्मेतशिखर, अष्टापद, सिद्धाचल, गिरिनार, आबू, शर्केश्वर, केसरिया जी, तारंगा, अन्तरिक्ष, वरकाण, जीरावला, खंभात ये सब तीर्थ भरत क्षेत्र के हैं । इन के सिवाय और भी जो जो चैत्य हैं वे सभी वन्दनीय हैं। .. महाविदेह क्षेत्र में इस समय बीस तीर्थङ्कर वर्तमान हैं; सिद्ध, अनन्त हैं; ढाई द्वीप में अनेक अनगार हैं। ये सभी बन्दनीय हैं। ४९----पोसह पच्चक्खाण सूत्र । +करेमि भंते ! पोसहं, आहार-पोसहं देसओसव्वओ, सरीरसक्कार-पोसहं सव्वओ, बंभचेर-पोसहं सव्वओ, १-श्रावक का ग्यारहवाँ व्रत पौषध कहलाता है। सो इस लिये कि उस से धर्म की पुष्टि होती है । यह व्रत अष्टमी चतुर्दशी आदि तिथियों में चार प्रहर या आठ प्रहर तक लिया जाता है । इस के आहार, शरीर-सत्कार, ब्रह्मचर्य और भव्यापार, ये चार भेद है : [आवश्यक प० ८३५] । इन के देश और सर्व इस तरह दो दो भेद करने से आठ भेद होते हैं । परन्तु परम्परा के अनुसार इस समय मात्र आहार-पौषध देश से या सर्व से लिया जाता है; शेष पाषध सर्व से ही लिये जाते हैं । चंउचिहाहार उपवास करना सर्व-आहार-पौषध है; तिावहाहार, आयंबिल, एकासण आदि देश-आहार-पोषध हैं। केवल रात्रि-पौषध करना हो तो भी दिन रहते ही चउविहाहार आदि किसी व्रत को करने की प्रथा है। 1 करोमि भदन्त ! पौषधं, आहार-पौषधं देशतः सर्वतः, शरीरसत्कारपौषधं सर्वतः, ब्रह्मचर्य-पौषधं सर्वतः, अव्यापार-पौषधं सर्वतः, चतुर्विधे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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