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________________ वंदित्त सूत्र । १०७ चूर्ण आदि औषध का प्रयोग करना कराना; इत्यादि प्रकार के हिंसा के साधनों की निन्दा की गई है। - दूसरी गाथा में--अयतना पूर्वक स्नान, उबटन का करना, अबीर, गुलाल आदि रङ्गीन चीजों का लगाना, चन्दन आदि का लेपन करना, बाजे आदि के विविध शब्दो का सुनना, तरह तरह के लुभावने रूप देखना, अनक रसों का स्वाद लेना, भाँति भाँति के सुगन्धित पदार्थों का सूंघना, अनेक प्रकार के वस्त्र, आसन और आभूषणों में आसक्त होना, इत्यादि प्रकार के प्रमादाचरण की निन्दा की गई है। तीसरी गाथा में-अनर्थदण्ड विरमण व्रत के पाँच अतिचारों की आलोचना है । वे अतिचार इस प्रकार हैं:-(१) इन्द्रियों में विकार पैदा करने वाली कथायें कहना, (२) हँसी, दिल्लगी या नकल करना, (३) व्यर्थ बोलना, (४) शस्त्र आदि सजा कर तैयार करना और (५) आवश्यकता से अधिक चीजों का संग्रह करना ॥२४--२६॥ [नववें व्रत के अतिचारों की आलोचना ] * तिविहे दुप्पणिहाणे, अणवट्ठाणे तहा सइविहूणे । सामाइय वितह कए, पढमे सिक्खावए निंदे ॥२७॥ * त्रिविधे दुष्प्रणिधाने,-ऽनवस्थाने तथा स्मृतिविहीने । सामायिके वितथे कृते, प्रथमे शिक्षाव्रते निन्दामि ॥२७॥ + सामाइयस्स समणो० इमे पंच०, तंजहा-मणदुप्पणिहाणे वइदुप्पणिहाणे कायदुप्पणिहाणे सामाइयस्स सइअकरणया सामाइयस्स अणवाठ्यस्स करणया [आव० सू०,पृ. ८३१] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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