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________________ ९२ प्रतिक्रमण सूत्र | जायदाद को दूसरे की साबित करना, किसी की रक्खी हुई धरोहर को दबा लेना या झूठी गवाही देना इत्यादि प्रकार के झूठ का त्याग करता है । यही दूसरा अणुवूत है । इस व्रत में जो बातें अतिचार रूप हैं उन को दिखा कर इन दो गाथाओं में उन के दोषों की आलोचना की गई है । वे अतिचार इस हैं: प्रकार (१) विना विचार किये ही किसी के सिर दोष मढ़ना, (२) एकान्त में बात चीत करने वाले पर दोषारोपण करना, (३) स्त्री की गुप्त व मार्मिक बातों को प्रकट करना, (४) असत्य उपदेश देना और (५) झूठे लेख (दस्तावेज) लिखना ॥ ११ ॥ १२ ॥ [ तीसरे अणुवूत के अतिचारों की आलोचना ] * तइए अणुव्वयम्मि, धूलगपरदव्वहरणविरईओ । आयरिअमप्पसत्थे, इत्थ पमायप्पणं ॥ १३॥ तेनाहडप्पओगे, तप्पाडरूवे विरुद्धगमणे अ । कूडतुलकूडमाणे, पडिक्कमे देसिअं सव्वं ॥ १४ ॥ * तृतीयेऽणुवूते, स्थूलकपरद्रव्यहरणविरतितः । आचरितमप्रशस्ते ऽत्रप्रमादप्रसङ्गेन ॥१३॥ स्तेनाहृतप्रयोगे, तत्प्रतिरूपे विरुद्ध गमने च । कूटतुलाकूट माने, प्रतिक्रामामि दैवसिकं सर्वम् ॥ १४॥ - 1 थूलादत्तादानवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच०, तंजहा - तेनाहडे तक्करपओगे विरुद्धरज्जा इक्कमणे कूडतुलकूडमाणे तप्पडिरूवगववहारे । [ आवश्यक सूत्र, पृष्ठ ८२२ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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