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________________ वंदित्त सूत्र । भावार्थ-उपयोग न रहने के कारण, या राजा आदि किसी बड़े पुरुष के दबाव के कारण, या नौकरी आदि की पराधीनता के कारण मिथ्यात्व पोषक स्थान में आने जाने से अथवा उसमें ठहरने घूमने से सम्यग्दर्शन में जो कोई दूषण लगता है, उसकी इस गाथा में आलोचना की गई है ॥५॥ । सम्यक्त्व के अतिचारों की आलोचना ] संका कंख विगिच्छा, पसंस तह संथवो कुलिंगीसु । सम्मत्तस्सइआरे, पडिक्कमे देसि सव्वं ॥६॥ * अन्वयार्थ-'संका' शङ्का 'ख' काङ्क्षा 'विगिच्छा' फल में सन्देह ‘पसंस' प्रशंसा 'तह' तथा 'कुलिंगीसु' कुलिङ्गियों का 'संथवो' परिचय; [इन] 'सम्मत्तस्स' सम्यक्त्व-सम्बन्धी 'अइआरे' अतिचारों से 'देसिअं' दैवसिक [ जो पाप लगा] 'सव्वं' उस सब से 'पडिक्कमे' निवृत्त होता हूँ॥६॥ * शङ्का काडक्षा विचिकित्सा, प्रशंसा तथा सँस्तवः कुलिङ्गिषु । सम्यक्त्वस्यातिचारान् ,प्रतिक्रामामि देवसिकं सर्वम् ॥६॥ * सम्यक्त्व तथा बारह व्रत आदि के जो अतिचार इस जगह गाथाओं में हैं वे ही आवश्यक, उपासकदशा और तत्त्वार्थ सूत्र में भी सूत्र-बद्ध हैं। उन में से सिर्फ आवश्यक के ही पाठ, जानने के लिये, यहां यथास्थान लिख दिये गये हैं: ___ सम्मत्तस्स समणोवासएक इमे पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा, तंजहा-संका कंखा वितिगिच्छा परपासंडपसंसा परपासंडसंथवे । [आवश्यक सूत्र, पृष्ठ १] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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