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प्रतिक्रमण सूत्र ।
(३) त्यागी महात्माओं के वस्त्र - पात्र उन की त्यागवृत्ति के कारण मलिन हों तो उन्हें देख कर घृणा न करना या धर्म के फल में संदेह न करना निर्विचिकित्सा - निःसंदेहपन है ।
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(४) मिथ्यात्वी के बाहरी ठाठ को देख कर सत्य मार्ग में डावाँडोल न होना अमूढदृष्टिता है ।
(५) सम्यक्त्व वाले जीव के थोड़े से गुणों की भी हृदय से सराहना करना और इस के द्वारा उसको धर्म-मार्ग में प्रोत्साहित करना उपबृंहण है ।
(६) जिन्होंने धर्म प्राप्त नहीं किया है उन्हें धर्म प्राप्त कराना या धर्म प्राप्त व्यक्तियों को धर्म से चलित देख कर उस पर स्थिर करना स्थिरीकरण है ।
(७) साधर्मिक भाइयों का अनेक तरह से हित विचारना वात्सल्य है ।
(८) ऐसे कामों को करना जिनसे धर्म-हीन मनुष्य भी वीतराग के कहे हुए धर्म का सच्चा महत्त्व समझने लगे प्रभावना है।
इनको दर्शनाचार इस लिये कहा है कि इनके द्वारा दर्शन ( सम्यक्त्व ) प्राप्त होता है या प्राप्त सम्यक्त्व की रक्षा होती है ॥ ३ ॥
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