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आचार की गाथायें । (७) सूत्रका सत्य अर्थ करना अर्थाचार है ।
(८) सूत्र और अर्थ दोनों को शुद्ध पढ़ना, समझना तदुभयाचार है।
[दर्शनाचार के भेद ] * निस्संकिय निखिय, निनितिगिच्छा अमृढदिट्ठी । उवयूह-थिरीकरणे, बच्छल पभावणे अट्ठ ॥३॥
अन्वयार्थ-'निस्संकिय' निःशङ्कपन 'निकाखिय' काङ्क्षा रहितपन 'निवितिगिच्छा' निःसंदेहपन 'अमूढदिट्ठी' मोहरहित दृष्टि 'उववूह' बढ़ावा-गुणों की प्रशंसा करके उत्साह बढ़ाना 'थिरीकरणे' स्थिर करना 'वच्छल्ल' वात्सल्य 'अ' और 'पभावणे' प्रभावना [ये ] 'अट्ठ' आठ [ दर्शनाचार हैं ॥३॥
भावार्थ-दर्शनाचार के आठ भेद हैं । उनका स्वरूप इस प्रकार है:
(१) श्रीवीतराग के वचन में शङ्काशील न बने रहना निःशङ्कपन है।
(२) जो मार्ग वीतराग-कथित नहीं है उस की चाह न रखना काङ्क्षाराहतपन है।
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* निःशङ्कितं निष्काडिक्षतं, निर्विचिकित्साऽमूढदृष्टिश्च । उपबृंहः स्थिरीकरण, वात्सल्यं प्रभावनाऽष्ट ॥ ३ ॥
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