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आचार की गाथायें
[ चारित्राचार के भेद ] * पणिहाण-जोग-जुत्ते, पंचहिं समिईहिं तीहिं गुत्तीहिं । एस चरित्तायारो, अट्ठविहो होइ नायव्वो ॥ ४ ॥
अन्वयार्थ-'पणिहाणजोगजुत्तो' प्रणिधानयोग से युक्त होना-योगों को एकाग्र करना 'चरित्तायारो' चारित्राचार 'होइ' है। 'एस' यह [ आचार 7 ' पंचहिं ' पाँच ' समिईहिं ' समितिओं से [और 'तोहिं तीन 'गुत्तीहिं' गुप्तिओं से 'अट्ठविहीं आठ प्रकार का 'नायव्यो' जानना चाहिए ॥ ४ ॥
भावार्थ-प्रणिधानयोगपूर्वक-मनोयोग, वचनयोग, काययोग की एकाग्रतापूर्वक-संयम पालन करना चारित्राचार है । पाँच समितियाँ और तीन गुप्तियाँ ये चारित्राचार के आठ भेद हैं; क्योंकि यही चारित्र साधने के मुख्य अङ्ग हैं और इन के पालन करने में योग की स्थिरता आवश्यक है ॥४॥
__ [तपआचार के भेद ] + बारसविहम्मि वि तवे, सभिंतर-बाहरे कुसलदिहे।
अगिलाइ अणाजीवी, नायब्वो सो तवायारो ॥५॥
* प्रणिधानयोगयुक्तः, पञ्चभिः समितिभिस्तिसभिर्गुप्तिभिः । ___ एष चारित्राचारोऽष्टविधो भवति ज्ञातव्यः ॥४॥' + द्वादशविधेऽपि तपसि, साभ्यन्तरबाह्ये कुशलदिष्टे।
अग्लान्यनाजीवी, ज्ञातव्यः स तप-आचारः ॥५॥
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