________________
प्रतिक्रमण सूत्र ।
सिद्धान्त को 'निच्चं' नित्य 'नमामि — नमन करता हूँ ॥३॥
__ भावार्थ- [ सिद्धान्त की स्तुति ] जो मोक्ष मार्ग पर चलने के लिये अर्थात् सम्यग्दर्शन, साम्यग्ज्ञान और सम्मक् चरित्र का आराधन करने के लिये वाहन के समान प्रधान साधन है, जो मिथ्यावादियों के घमंड को तोड़ने वाला है और जो तीन लोक में श्रेष्ठ तथा विद्वानों का आधार भूत है, उस जैन सिद्धान्त को मैं नित्य प्रति नमन करता हूँ ॥ ३ ॥
* कुंदिंदुगोक्खीरतुसारवन्ना, सरोजहत्था कमले निसन्ना। वाएसिरी पुत्थयवग्गहत्था, सुहाय सा अम्ह सया पसत्था ॥४॥
अन्वयार्थ-' कुंदिदुगोक्खीरतुसारवन्ना ' मोगरा के फूल, चन्द्र, गाय के दूध और बर्फ के समान वर्णवाली अर्थात् श्वेत, सरोजहत्था ' हाथ में कमल धारण करने वाली 'कमले' कमल पर - निसन्ना' बैठने वाली 'पुत्थयवग्गहा ' हाथ में पुस्तकें धारण करने वाली [ ऐसी] 'पसत्था'प्रशस्तश्रेष्ठ 'सा' वह-प्रसिद्ध 'वाएसिरि' वागीश्वरी-सरस्वती देवी 'सया' हमेशा ' अम्ह' हमारे 'सुहाय ' सुख के लिये हो ॥ ४ ॥
-~- * कुन्देन्दुगोक्षीरतुषारवर्णा सरोजहस्ता कमले निषण्णा वागीश्वरी
कवर्गहस्ता सुखाय सा नः सदा प्रशस्ता ॥ ४ ॥
Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org