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प्रतिक्रमण सूत्र ।
पासं पयासं सुगुणिक्कठाणं, भत्ती वन्दे सिरिवद्ध माणं ॥ १ ॥
अन्वयार्थ
प्रथम ' जिणिदं '
' मुर्णिदं ' मुनियों के इन्द्र ' नेमिजिणं'
श्री नेमिनाथ को,
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पयासं' प्रकाश फैलाने वाले ' पासं' श्रीपार्श्वनाथ को ' तओ' तथा 'सुगुणिकठाणं ' सद्गुण के मुख्य स्थान- भूत 'सिविद्धमाणं ' श्रीबर्द्धमान स्वामी को 'भक्तीइ' भक्ति पूर्वक 'वंदे' वन्दन करता हूँ ।
-' कल्लाणकन्दं ' कल्याण जिनेन्द्र को ' संतिं '
के मूल ' पढमं '
श्री शान्तिनाथ को,
भावार्थ - [ कुछ तीर्थङ्करों की स्तुति ] कल्याण के कारण प्रथम जिनेश्वर श्रीआदिनाथ, श्रीशान्तिनाथ, मुनिओं में श्रेष्ठ श्रीनेमिनाथ, अज्ञान दूर कर ज्ञान के प्रकाश को फैलाने वाले श्री पार्श्वनाथ और सद्गुणों के मुख्य आश्रय-भूत श्रीमहावीर इन पाँच तीर्थरों को मैं भक्ति पूर्वक वन्दन करता हूँ ॥१॥ * अपारसंसारसमुपाद्दरं, पत्ता सिवं दिन्तु सुइक्कसारं । सव्वे जिनिंदा सुरविंदवंदा, कल्लाणवल्लीण विसालकंदा ||२||
अपारसंसारसमुद्रपारं प्राप्ताः शिवं ददतु शुच्येकसारम् । सर्वे जिनेन्द्राः सुरवृन्दवन्द्याः कल्याणवल्लीनां विशालकन्दाः ||२||
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