SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२ प्रतिक्रमण सूत्र । सब धर्मों में 'प्रधानं' प्रधान [ ऐसा 'जैन शासनम्' जिन-कथित शासन-सिद्धान्त 'जयति' विजयी हो रहा है ॥५॥ भावार्थ-लौकिक-लोकोत्तर सब प्रकार के मंगलों की जड़ द्रव्य-भाव सब प्रकार के कल्याणों का कारण और संम्पूर्ण धर्मों में प्रधान जो वीतराग का कहा हुआ श्रुत-धर्म है वही सर्वत्र जयवान् वर्तरहा है ॥ ५ ॥ १९--अरिहंतचेइयाणं सूत्र । .... * अरिहंतचेइयाणं करेमि काउस्सग्गं वंदणवत्तियाए, पूअणवात्तयाए, सक्कारवत्तियाए, सम्माण-चत्तियाए, बोहिलाभवत्तियाए, निरुवसग्गवत्तियाए॥ अन्वयार्थ-'अरिहंतचेइयाणं' श्रीअरिहंत के चैत्यों के अर्थात् बिम्बों के 'वंदणवत्तियाए' वन्दन के निमित्त 'पूअणवत्तियाए' पूजन के निमित्त 'सक्कारवत्तियाए' सत्कार के निमित्त [ और ] 'सम्माणवत्तियाए' सम्मान के निमित्त तथा] 'बोहिलाभवत्तियाए' सम्यक्त्व की प्राप्ति के निमित्त 'निरुवसग्गवत्तियाए' मोक्ष के निमित्त 'काउस्सग्गं' कायोत्सर्ग 'करेमि' करता हूँ ॥२॥ * अर्हच्चैत्यानां करोमि कायोत्सर्ग ॥१॥ वन्दनप्रत्ययं, पूजनप्रत्ययं, सत्कारप्रत्ययं, सम्मानप्रत्ययं, बोधिलाभप्रत्ययं, निरुपसर्गप्रत्ययं ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy