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प्रतिक्रमण सूत्र |
अन्वयार्थ — 'कम्म-घण- मुक्कं कर्मों के समूह से छुटे हुए 'विसहरविस- निन्नासं' साँप के जहर का नाश करने वाले, 'मंगलकल्लाण- आवासं 'मंगल तथा आरोग्य के स्थान भूत [ और ] ' उवसग्गहरपासं उपसर्गों को हरण करने वाले पार्श्व नामक यक्ष के स्वामी [ ऐसे ] 'पास' श्रीपार्श्वनाथ भगवान्को 'वंदामि' वन्दन करता हूँ ॥१॥
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भावार्थ - उपसर्गों को दूर करने वाला पार्श्व नामक यक्ष जिनका सेवक है, जो कर्मों की राशि से मुक्त हैं, जिनके स्मरण मात्र से विषैले साँप का जहर नष्ट हो जाता है और जो मंगल तथा कल्याण के अधार हैं ऐसे भगवान् श्री पार्श्वनाथ को मैं बन्दन करता हूँ ॥ १ ॥
* विसहर - फुलिंगमंतं, कंठे धारेइ जो सया मणुओ ।
तस्स गह-रोग-मारी, दुट्ठजरा जंति उवसामं ||२॥
अन्वयार्थ - 'जो' जो 'मणुओ' मनुष्य 'विसहर-फुलिंगमंतं' विषधर स्फुलिङ्ग नामक मन्त्र को 'कंठे' कण्ठ में 'सया' सदा 'धारे' धारण करता है 'तस्स' उसके 'गह' गृह, 'रोग' रोग, 'मारी' हैजा और 'दुट्ठजरा' दुष्ट - कुपित - ज्वर [ आदि ] 'उवसामं' उपशान्ति 'जंति' पाते हैं ॥२॥
* विषधरस्फुलिङ्ग-मन्त्रं, कण्ठे धारयति यः सदा मनुजः । तस्य प्रहरोगमारीदुष्टज्वरा यान्ति उपशमम् ॥३॥
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