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________________ प्रथमखम. २३ अतीत कालमें भरत राजानें जिसके नामसें इस खंगको जरतखं कहते है तिसने ५५ अश्वमेध यज्ञ करे, यह कथन ऋग्वेदके ऐतरेय ब्राह्मणमें है. भरतो दौष्यंतयमुनामनु । गंगायां वृत्रध्ने बनात्पंचपं चाशतं हयान् -- महाकर्म भरतस्य न पूर्वे नापरे जनाः ॥ ८ पांचिका, खंड २३. अर्थ- दुष्यंतका लमका भरते गंगाका तीरपर पंचावन अ श्वमेध कीया है. ए जरतका महा कर्म दुसरा किनेबी नहीं कीया है.. तथा रामचंद और पांवोने अपनी हत्या नतारनेकों प्रश्वमेघ यज्ञ करा ऐसे कथानक पुराणोमें अनेक जंगें लिखे है. यजुर्वेदका शतपथ ब्राह्मण है और तिसके उपर कात्याय नी सूत्र है. ये दोनो ग्रंथ बने महाजारत समान है. तिनमें तमाम यज्ञकी क्रिया बतलाई है. तिनकी हिंसक श्रुतियां सर्व लिखीये तो थक जाईये परंतु पूरी नहीं होवे. इस वास्ते पांच वाक्य: लिखताडुं १ पंचचित्तयः स्तद्य पशुशीर्षाण्युपधायः ॥ २ ॥ श्चितिःश्चिनोत्येतैरेव तच्छीर्पभिरेताकुसिंधानि संदधाति. अध्याय ६ ॥ १-१-११. ३ यदैकादशिनान्पशूनालभते - १३ अ १-१४-२ ॥ ४ शतमालभत ॥ १३ अ० १-१४-४॥५ गव्या उत्तमेहन्नलभत १३ अ २-७-३ इति यजुर्वेदः अथ सामवेदका वर्णन.. ताक महाब्राह्मण | यह ग्रंथ सामवेदके अंतर्गत है. तिसके उपर सायनाचार्यका करा जाप्य है. यह सायनाचार्य ५०० वर्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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