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अज्ञानतिमिरज्ञास्कर.
वध्यमुदरस्या पवातिय आमस्य क्रविपो गंधो अस्ति ॥ सुकृता तच्छमितारः कृण्वंतूत मेधं शृतपाकं पचंतु । चतुस्त्रिंशद्वाजिनो देवधर्वकीरश्वस्य स्वधितिः समेति ॥ अछिद्रा गात्रावयुना कृणोत्परुष्यरुरनुघुप्या विशस्त । सुंगव्यं नो वाजी स्वश्व्यं पुंसः पुत्रां उत विश्वा पुषंरयि ॥ अनागास्वं नो अदितिः कृणोतु क्षत्रं नो अश्वो वनतां हविष्मान् । अजः पुरो नीयते नाभिरस्यानु पश्चात्कवयो यंतिरेभाः ॥ उपप्रागात्परमं यत्सधस्थमव अच्छा पितरं मातरं च । आद्या देवाज्जुष्टतमाहिगम्या अथाशास्ते दाशुषे वीर्याणि ॥
अर्थ - धोके आगे यह बकरा पूषा और अन्यदेवतायोंको वास्ते ज्याये है. इस घोका जो कुछ मांस महीया खायेंगी और जो कुछ बुरेका लगा रहेगा और जो कुछ अश्व के मारने वाले के नखो में रहेगा सो घोके हाथ स्वर्ग में जावेंगा, इस घोमेके पेटमेंसे जो कुछ कच्चा घास निकलेगा और जो कुछ काचा मांस निकलेगा सो स्वच्छ करके अच्छी तरें रांधना घोमेके शरीर में ३४ पांसलीयां है तिनमें बुरा अबी तेरेंसे फेर फेरके कोई हिस्सा बिगामना नही. अंग अलग अलग काढने. इस अश्वमेध - के करने से हमको बहुत दौलत मिलेगी और गाय और घोमें और आरोग्य और सन्तान इसको प्राप्त होवेगे. घोडेके आगे बकरा बांधना और तिसके पीछे मंत्र पढनेवाला ब्राह्मण खडा रहे. इस घोके मारनेसे जहां इस घोमके मातापिता है ऐसा जो देवतायों का स्थानक तहां यह घोमा जावेगा, और होम करनेवालेकों लाभ देवेगा.
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