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प्रथमखम. पूर्वोक्त अनुष्ठानका नाम पितृमेध है. जिस ठिकाने पशु शब्द आवे है तिस ठिकाने तिसका अर्थ बकरा करणा ऐसा जज्ञेश्वर शास्त्री आर्य विद्यासुधारक ग्रंथमें लिखता है ॥ यत्र पशुसामान्योक्तिस्तत्र छागः पशाह्यो भवति ॥
पृष्ट १ अर्थ-जिसमें सामान्य पशु एसा कहा है तिसमें मेंढा लेना. __ यह यजुर्वेदमें कै कै जग्गे पर ऐसी बीनत्स श्रुतियां है कि अझजनकोनी वांचनेसे बहुत लज्जा आवे. मर्यादासे अतिरिक्त कैसा कैसा बीनत्स वाक्य है सो पंडितजनको इस यजुर्वेदका तेश्सवा अध्याय चांचनेसे मालुम हो जावेगा. इस अध्यायका इस जग्गे पर नतारा करनेकों हमकों बहुत लज्जा आती है. ___ यज्ञ करनेसें बमा पुण्य होता है ऐसा धर्मशास्त्र तथा पुराणों में लिखा है जहां कही बड़े नारी पुण्यका वर्णन करा है तिस ठिकाने यज्ञकी तुलना करी है. और यज्ञ करनेसे इंपदवी मिल ती है तिस वास्ते इंका नाम शतक्रतु अर्थात् सौ यज्ञ करनेवाला ऐसा अर्थ ब्राह्मण करते है, सर्व यझोंमेंसे अश्वमेध यज्ञका फल बहुत बमा लिखा है. गंगाकी यात्रा करने जावे तो तिसको मिंगमिंगमें अश्वमेध यज्ञका फल लिखा है. “पदेपदे यज्ञफलमानुपूा लन्नंति ते"। पाराशर अध्याय ३ श्लोक 10
तिस अश्वमेधका वर्णन ऋग्वेद संहिता अष्टक २ अध्याय ३ वर्ग ७, , ए, १०, ११, १२, १३ में है सो नीचे लिखा जाता है.
अश्वमेध दीर्घतमा औचथ्यः त्रिष्टुप् ॥ एष छागपुरो अश्वेन वाजिना पूष्णो भागो नीयते विश्वदेव्यः । यदश्वस्य ऋविषो मक्षिका शयद्वास्वरौ स्वविधौ रिप्तमस्ति । य. दस्तयोः शमितुर्यन्नखेषु सर्वाता ते अपि देवेष्वस्तु। यदू
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