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अज्ञानतिमिरनास्कर. २८ देवः सवितः प्रसुवः । यजुर्वेद अध्याय ३०
इत नत्तरं पुरुषमेधः चैत्रशुक्लदशम्यारंनः अत्र यूपैकादशिनि नवन्ति एकादशानिषोमियाः पशवो नवन्ति तानियुक्तां पुरुषां सहस्रशीर्षा पुरुष इति आलंननक्रमेण ययादेवंत प्रोक्षणादिपर्यग्निकरणानन्तर इदं ब्रह्मणे इत्येवं सर्वेषां यथा स्वस्वदेवतोद्देशेन त्यागः ततः सर्वान्यूपेन्यो विमुच्योत्सृजति ततः एकादाशनैः पशुनिः संझपनादि प्रधानयागांतं कृत्वा संन्यसेत् अथवा गृहं व्रजेत् इति महीधरनाष्यं.
२९ वह वपा जातवेदः यजु० अध्याय ३५ मंत्र २०
मध्यमाष्टका गोपशुना कार्या तस्या धेनोर्वपां जुहोति वदं वपामंत्रेण ॥
सातवे मंत्रसे लेकर एकुनतीसवे मंत्र तकका लावार्थ लि. खते है.
६ए छसो नव अश्वमेधमें अन्य पशु चाहिये तिनके नाम लिखे है तिनमें अनेक रंगके बकरे और बलद तरह तरेहके पदी तथा अनेरे बोटे जानवर मूसे तथा मेंमक, नंट तथा गैंमा इत्यादि सर्व जातके पशुयोंका वध करणा लिखा है. वे सर्व २७ जंगलके जीव है वे गमेदेने, एसेनाध्यकार महीधर पंमितने लिखाहै और अठ्ठावीसमे मंत्रमें नरमेध चैत्र शुदि १० मी के दिनसें कर ना लिखा है. तिसमें पशुयोंकों वांधनेके इग्यारह ११ यूप स्तंन करणे और तिनसे ग्यारा बकरे तथा २०० दोसो माणस बांधके तिनका प्रोक्षण त्याग निवेदन करके जितने माणस बांधे होवे तिनकों बोम देना और इग्यारह ११ बकरे जो शेष रहे है तिनका वध करके होम करणा ऐसें महीधर नाष्यकार लिखता है. और शए एकुनतीसवे मंत्रमें माणसके दाह करनेके वखतमें गायकी वपा अर्थात् गायका कलेजा काढके होम करना लिखा है. इस
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