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________________ प्रथमखं. १५ तानैवोभयान् प्रीणाति ३-९-१० १६ ब्रह्मणे ब्राह्मणमालभते ३-४-१ ॥ १७ यदष्टादशीन आलभ्यते ३-९-१ अर्थ - चौथी श्रुतिसें १७ श्रुति तक. ४. द्यावा पृथ्वी देवताके वास्ते धेनु अर्थात् गोवध करके यज्ञ होता है. वायु देवताके वास्ते बनेका वध करणा. ५. यह इस प्रकार गाय यज्ञ होता है सो गोसव नाम यज्ञ है. ६. प्रजापति देवें पशुकों उप्तन्न करा है तिस पशुकों लेके अन्य देवताओ ने यज्ञ करा तिस्से तिनकी मनोकामना पूरी दूई है. ७. प्रजापति देवताकों घोमा योग्य पशु है तिसवास्ते प्रजाप ति देवताके ताई घोगेका वध होता है ऐसें करनेसें समृद्धि मिलती है. ८. एकादश अर्थात् ग्यारा पशुकाजी यज्ञ होता है. ए. अनेक प्रकारके देवते है तिनकों अनेक प्रकारके पशु यज्ञ में वध करके दीये जाते है. श्रारण्य जंगली पशु दशनी होते है. ग्राम्य पशुजी यज्ञमें वध करके दीये जाते है. १०. गामके तथा जंगलके दोनो ठिकानेके रहनेवाले पशु यज्ञके वास्ते वध करनें योग्य है. ११. अश्वमेध यज्ञ जो करता है तिसका तेज वधता है. १२. जंगलके पशु लेकर यज्ञ करना तिस्सें गाय विशेष करके यज्ञके योग्य है. तिसवास्ते जेकर अच्छा दिन होवे तो गायकाही वध करना. १३. कुत्तेकों लाठीसें मारके घोडेके पगतले गेरना जो श्रश्वमेघ यज्ञ करता है तिसके घरमें पशुयोंकी वृद्धि होती है. १४. बकरेका बच्चा, तीतर पक्षी, सुफेद बगला और काला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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