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प्रथमखम,
कथा विस्तार सहित रुग्वेदमें लिखी है वे श्रुतियां नीचे लिख । है. १४ हरिश्चंद्रो वैधस ऐक्ष्वाको राजाऽपुत्र आस० ७ पं० खं० १३-१४-१५-१६ ॥
सर्व ग्रंथो में जितने यज्ञ लिखे है तिन सर्वमें हिंसा है सोई म पुराण में कहा है || हिंसा स्वभावो यज्ञस्य । अर्थ-हिंसा एज यज्ञका स्वाव है.
इसतरें चारों वेदोमें श्रेष्ठ जो रुग्वेद है तिसको स्वरूप वर्णन लिखा. पीछे कृष्ण यजुर्वेद जिसकों तैतरीय कहते है और शुक्ल यजुर्वेद जिसकों वाजसनीय कहते है तिनका स्वरूप लिखूंगा.
कृष्णका यजुर्वे प्रथम तैतरीय ब्राह्मण बांचता ऐसा मालुम होता दका विचार है कि इसवेद में यज्ञ यजनकी क्रिया बहुत बढाई है और यज्ञ अनुष्ठानमें चारों वेदका काम पकता है तिनमें यजुर्वेदका बहुत काम पता और यजुर्वेद पढा हुआ होवे तिसकों ही अध्वर्यु करने में आता है. तैतरीय यजुर्वेदके ब्राह्मण में नीचे लिखी श्रुतियां है.
१ दैव्याः शमितार उत मनुष्या आरभध्वं ३ कांड ६ अध्याय ६ अनुवाक.
२. अध्रिगो शमीध्वम् सुशमीशमीत्वम् शमिध्वमधि गो ३ कां ६ अ. ६ अनु.
३. सायनाचार्यज्ञाप्ये क्रूरकर्मेति मत्वा तडुपेक्षणं मानू दितिपुनः पुनश्वचनं.
जिसतरें ऋग्वेद के ऐतरेय ब्राह्मण में पशु मारनेके वास्ते आज्ञा लिखी है तिसरें इस वेद में वचन लिखें है । सायन नायार्थ, यद्यपि यह निर्दयपणाका काम है तोनी इसकी उपेक्षा
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